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________________ विषय-सूची तिरानवे गाथा पृष्ठ गाथा पृष्ठ सम्यक्चारित्ररूप मोक्षमार्गको भावके बिना तिर्यंचगतिके दुःख प्राप्त करनेका उपदेश ३८-४३ २७५ भोगे हैं। १० २८६ चारित्राधिकारका समारोप ४४-४५ २७५-२७६ | भावके बिना मनुष्यगतिके दुःख बोधपाहुड (बोधप्राभृत) भोगे हैं ११ २८७ मंगलाचरण और ग्रंथप्रतिज्ञा १-२ २७६ भावके बिना देवगतिके दुःख आयतन आदि ग्यारह स्थानोंके भोगे हैं १२-१६ २८७ नामनिर्देश ३-४ २७६ भावके बिना गर्भवास आदिके आयतनका वर्णन ५-६ २७७ दुःख भोगे हैं १७-२४ २८८-२८९ चैत्यगृहका वर्णन ७-८ २७७ भावके बिना विषवेदना आदिसे जिनप्रतिमाका वर्णन ९-१२ २७७ कुमरण प्राप्त किया है २५-२७ २८९ दर्शनका वर्णन १३-१४ २७८ भावके बिना निगोद आदिके जिनबिंबका वर्णन १५-१६ २७८ क्षुद्रभव प्राप्त किये हैं २८-२९ २८९ जिनमुद्राका वर्णन १७-१८ २७८ रत्नत्रयके बिना जीवने दीर्घ ज्ञानका वर्णन १९-२२ २७९ संसारमें भ्रमण किया है। २८९ देवका वर्णन २३-२४ २७९ सम्यग्दर्शनादिका स्वरूप ३१ २९० तीर्थका वर्णन २५-२६ २७९ भावके बिना जीवने कुमरण अरहंतका वर्णन २७-४० २८०-२८२ प्राप्त किये हैं ३२. २९० मुनियोंके निवासयोग्य स्थान भावके बिना जीवने क्षेत्रादि आदिका वर्णन ४१-४३ २८२ परिवर्तन पूर्ण किये हैं ३३२८० जिनदीक्षाका वर्णन ४४-५७ २८२-२८४ | भावके बिना अनेक रोग प्राप्त बोधपाहुड ग्रंथका समारोप और किये हैं ३७-३८ २९०-२९१ श्रुतज्ञानी भद्रबाहुका जयघोष ५८-६१ २८४-२८१ भावके बिना गर्भवास तथा भावपाहुड (भावप्राभृत) बाल्यावस्थाके दुःख प्राप्त मंगलाचरण और ग्रंथप्रतिज्ञा १ किये हैं ३९-४१ २९१ भावलिंग ही प्रथम लिंग है २ भावके बिना दुर्गंधयुक्त शरीर भावशुद्धिके लिए ही बाह्य परिग्रह प्राप्त होता है ४२ २९१ का त्याग किया जाता है ३ भावसे मुक्त ही मुक्त कहलाता है, भावरहित जीव सिद्ध नहीं होता ४ २८६ बांधवादि मात्रसे विमुक्त मुक्त नहीं ४३ २९१ भावहीन यतिका बाह्य मानकषायमें बाहुबलीका दृष्टांत ४४ २९१ परिग्रहत्याग व्यर्थ है २८६ निदानमें मधुपिंग और वसिष्ठमुनिका भावलिंगही शिवपुरीका मार्ग है ६ दृष्टांत ४५-४६ २९२ भावलिंगके बिना द्रव्यलिंग भावके बिना ८४ लाख योनियोंमें अनेक बार धारण किये हैं ७ २८६ भ्रमण होता है ४७ २९२ भावलिंगसे ही जिनलिंग होता है ४८ २९२ भावके बिना जीवने नरकगतिके बाहुमुनिका दृष्टांत ४९ २९२ दुःख भोगे हैं ८-९ २८६ द्वैपायन मुनिका दृष्टांत २९२ २८५ २८६
SR No.009555
Book TitleKundakunda Bharti
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year2007
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size92 MB
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