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जिनवचनसे पराङ्मुख अशुभ कर्म बाँधता है
जीव
भावशुद्धिको प्राप्त हुआ जीव शुद्ध कर्म बाँधता है
ज्ञानावरणादि कर्मोंको जलाकर
अनंतज्ञानादि गुणोंकी चिंताका उपदेश
शीलके अठारह हजार भेदोंका चिंतन करनेका उपदेश आर्त-रौद्र ध्यान छोड़कर धर्म्य
शुक्ल ध्यान करनेका उपदेश
भावलिंगी मुनि ही संसाररूपी वृक्षको काटते हैं रागरूप हवासे रहित होनेपर ही ध्यानरूपी दीपक जलता है पंचगुरुओं - परमेष्ठियोंके ध्यानका उपदेश ज्ञानमय शीतल जलके पानसे
व्याधि जन्म जरा आदिकी दाह मिटती है।
गाथा
षट्कायके जीवोंपर दया
करनेका उपदेश
प्राणिवधके कारण चौरासी लाख
योनियोंमें दुःख उठाता है
जीवोंको अभयदान देनेका उपदेश
३६३ मिध्यादृष्टियों के भेद
अभव्य जीव अपनी प्रकृति नहीं छोड़ता मिथ्यादृष्टि जीवको जिनप्रणीत धर्म नहीं रुचता कत्सित धर्ममें लीन हुआ जीव गतिका भाजन होता है
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भावलिंगी मुनिकी महिमा जब तक बुढ़ापा नहीं आया तब
तक आत्महित करनेका उपदेश १३२
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विषय-सूची
मिथ्यानय और मिथ्या शास्त्रोंसे
मोहित हुआ जीव अनादिसे भ्रमण कर रहा है
३६३ पाखंडियोंके मतको
छोड़नेका उपदेश
सम्यग्दर्शनादि रहित जीव चलता
फिरता शव है
सम्यग्दर्शनकी प्रधानताका
वर्णन
आत्मा कर्ता भोक्ता आदि है जिनभावनासे युक्त भव्य
जीव ही घातिया कर्मोंका क्षय
करता है
घातिचतुष्कके क्षयसे अनंत
चतुष्टय प्रकट होते हैं अरहंत परमेष्ठीके नाम
अरहंत परमेष्ठी मुझे उत्तम बोधि प्रदान करें
मुनींद्ररूपी चंद्रमाकी शोभाका वर्णन
गाथा
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विशुद्ध भावोंके धारक मुनि सांसारिक और पारमार्थिक
सुखको प्राप्त करते हैं
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जिन चरणकमल वंदनाका फल भावके द्वारा जीव कषाय और विषयसे लिप्त नहीं होते शीलसंयमादि गुणोंसे युक्त नीमुनि है कषायरूपी योद्धाओंके जीतनेवाले
ही धीर वीर हैं
विषयरूपी समुद्रसे तारनेवाले मुनि धन्य हैं।
मुनि, ज्ञानरूपी शस्त्रके द्वारा मायारूपी वेलको काटते हैं मुनि चारित्ररूपी तलवारसे पापरूपी स्तंभको काटते हैं
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पंचानवे
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