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नब्बे
तपश्चरण ही कर्मक्षयका कारण
तप प्रायश्चित्त क्यों है?
ध्यान ही सर्वस्व क्यों है?
कायोत्सर्ग किसके होता है?
समताके विना सब व्यर्थ है
स्थायी सामायिक किसके
होती है?
परमसमाध्यधिकार
परम समाधि किसके होती है? १२२-१२३
गाथा
११७
११८
पृष्ठ
२४२
३४६
११९-१२० २४३
१२१
२४३
शुद्ध निश्चय आवश्यक प्राप्तिका उपाय आवश्यक करनेकी प्रेरणा
बहिरात्मा और अंतरात्मा कौन है
१२४
प्रतिक्रमण आदि क्रियाओंकी सार्थक
१२५-१३३
परमभक्त्यधिकार
निर्वृत्ति भक्ति किसके होती है ? १३४-१३६ २४६ योगभक्ति किसके होती है? १३७-१३८
२४६
योगका लक्षण
आवश्यक शब्दकी निरुक्ति आवश्यक युक्तिका निरुक्तार्थ १४२ आवश्यक किसके नहीं है? १४३-१४५ आत्मवश कौन है?
१४६
मंगलाचरण और ग्रंथप्रतिज्ञा धर्म दर्शनमूलक है
१३९-१४० २४७
निश्चयपरमावश्यकाधिकार
२४४
२४४
१४७
. १४८
१४९-१५१
२४४-२४५
१४१ २४७
१५२-१५५
२४७
२४८
२४८
२४८
२४९
२४९
२४९-२५०
गाधा
पृष्ठ
दंसणपाहुड (दर्शन प्राभृत)
१
२
कुंदकुंद - भारती
२५९
२५९
विवाद वर्जनीय है
सहज तत्त्वकी आराधनाकी
विधि
निश्चय और व्यवहार नयसे केवलीकी व्याख्या केवलज्ञान और केवलदर्शन
१५७-१५८
शुद्धोपयोगाधिकार
साथ साथ होते हैं।
ज्ञान और दर्शनके स्वरूपकी समीक्षा
प्रत्यक्ष ज्ञानका वर्णन
परोक्ष ज्ञानका वर्णन
ज्ञान दर्शन दोनों स्वपरप्रकाशक
हैं
अष्टपाहुड
केवलज्ञानीके बंध नहीं है
केवलज्ञानीके वचन बंधके कारण नहीं हैं कर्मक्षयसे मोक्ष प्राप्त होता है कारण परमतत्त्वका स्वरूप निर्वाण कहाँ होता है ?
सिद्ध भगवान्का स्वरूप निर्वाण और सिद्धमें अभेद
कर्मवियुक्त आत्मा लोकाग्रपर्यंत
ही क्यों जाता है? ग्रंथका समारोप
गाथा
पृष्ठ
१५६ २५०
१६१ - १६६
१६७
१६८
१५९
१६०
दर्शनसे भ्रष्ट ही भ्रष्ट है सम्यक्त्वसे भ्रष्ट जीव संसारमें
घूमते हैं
१६९
१७२
१७३-१७४
१७५
१७६ १७७
१७८-१८०
१८१
१८२
१८३ १८४ - १८७
गाधा
३
४
२५०
२५१
२५१
२५१-२५२
२५२
२५२
२५३
२५३
२५३
२५४
२५४
२५४
२५५
२५५
२५५
२५५-२५६
पृष्ठ
२५९
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