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________________ विषय-सूची इक्यानवे पृष्ठ २५९ २६० २६० २६० गाथा सम्यक्त्वसे रहित जीव करोड़ों वर्षमें भी बोधिको प्राप्त नहीं होते ५ उत्कृष्ट ज्ञानी कौन होते हैं ६ सम्यक्त्वरूप सलिलका प्रवाहही बंधको नष्ट करता है ७ भ्रष्टोंमें भ्रष्ट जीवोंका वर्णन ८ धर्मात्मा मनुष्योंके दोषोंको कहनेवाले स्वयं भ्रष्ट हैं जिनदर्शनसे भ्रष्ट मनुष्य मूल विनष्ट है १० मोक्षमार्गका मूल जिनदर्शन है। स्वयं दर्शनसे भ्रष्ट होकर जो दूसरे सम्यग्दृष्टि जीवोंसे पैर पड़ाते हैं वे लूले और गूंगे होते हैं १२ दर्शनभ्रष्ट मनुष्योंकी पादवंदना करनेवाला बोधिका प्राप्त नहीं २६० २६० २६० २६० होता २६१ २६१ गाथा पृष्ठ भी मिथ्या है २४ २६२ देववंदित जिनेंद्रके रूपको देखकर जो गर्व करते हैं वे सम्यक्त्वसे रहित हैं २५ २६३ असंयमी वंदनीय नहीं है २६ २६३ गुणहीन वंदनीय नहीं है २७ २६३ तपस्वी साधुओंको कुंदकुंद स्वामीकी वंदना २८२६३ तीर्थंकर परम देव वंदना करनेके योग्य हैं २९ २६३ ज्ञान दर्शन चारित्र और नयके संयोगसे ही जिनशासनमें मोक्ष बताया है २६३ ज्ञान मनुष्य जीवनका सार है ३१ २६३ सम्यक्त्वसहित ज्ञान दर्शन चारित्र और तपसे ही जीव सिद्ध होते हैं ३२२६४ सम्यग्दर्शनरूपी रत्न देव दानवोंके द्वारा पूज्य है २६४ |उत्तम गोत्रके साथ मनुष्यजन्म पाकर जो सम्यग्दर्शन प्राप्त करते हैं वे मोक्षसुखको प्राप्त होते हैं ३४ स्थावर प्रतिमा किसे कहते हैं ३५ २६४ सर्वोत्कृष्ट निर्वाणको कौन प्राप्त होते हैं? ३६ २६४ सुत्तपाहुड (सूत्रप्राभृत) सूत्रका लक्षण १ २६५ शब्द अर्थके भेदसे द्विविध |श्रुतको जानकर जो मोक्षमार्गमें प्रवृत्त होता है वह भव्य है २ २६५ सूत्ररहित मनुष्य सूत्र -सूतरहित सूईके समान नष्ट हो जाता है ३ सूत्रसहित मनुष्य संसारमें नष्ट नहीं होता जो जिनकथित सूत्रके अर्थ तथा जीवजीवादि पदार्थों को जानता है २६१ २६१ २६४ सम्यग्दर्शन कहाँ होता है? सम्यक्त्वसे ही सेव्य और असेव्यका बोध होता है सेव्य और असेव्यको जाननेवाला ही निर्वाणको प्राप्त होता है १६ जिनवचनरूप औषध समस्त दु:खोंका क्षय करती है जिनमतमें तीन लिंग ही हैं सम्यग्दृष्टिका लक्षण व्यवहार और निश्चय नयसे सम्यग्दर्शनका लक्षण सम्यग्दर्शन मोक्षकी प्रथम सीढ़ी है शक्तिके अनुसार क्रिया करना चाहिए २२ दर्शन ज्ञान चारित्र तप तथा विनयमें लीन पुरुषही वंदनीय है २३ जो दिगंबर वेषको दर्शनीय नहीं मानता वह संयमधारी होकर २६१ २६२ २६२ २६२ २६२
SR No.009555
Book TitleKundakunda Bharti
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year2007
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size92 MB
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