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________________ क्रिया और भावकी अपेक्षा द्रव्योंमें विशेषता गुणोंकी विशेषतासे द्रव्यमें विशेषता होती है। मूर्त और अमूर्त गुणोंके लक्षण मूर्त पुद्गल द्रव्योंके गुणोंका वर्णन वत्त्वकी अपेक्षा विशेषता प्रदेशवान् और अप्रदेशवान् द्रव्योंका निवासक्षेत्र आकाशके समान धर्म, अधर्म, एक जीव द्रव्य और पुद्गलमें भी प्रदेशोंका सद्भाव है काला प्रदेशरहित है कालपदार्थके द्रव्य और पर्यायोंका विश्लेषण अन्य पाँच अमूर्त द्रव्योंके गुणका वर्णन छह द्रव्योंमें प्रदेशवत्त्व और अप्रदेश ४३ आकाशप्रदेशका लक्षण तिर्यक्प्रचय और ऊर्ध्वप्रचयका गाथा ३७ ३८ ३९ चार प्राणोंका वर्णन जीव शब्दकी निरुक्ति ४० ४४ ४५ ४६ 2999 ४१-४२ १६८ ४७ ४८ लक्षण कालद्रव्यका ऊर्ध्वप्रचय निरन्वय नहीं है वर्तमान समयके समान काल द्रव्यके अतीत और अनागत सभी समय में उत्पादादि होते हैं ५१ कालद्रव्य सर्वथा प्रदेशरहित नहीं किंतु एकप्रदेशी है व्यवहार नयसे जीवका लक्षण ४९ ५० ५२ ५३ ५४ ५५ प्राण पौद्गलिक हैं ५६ प्राण पौद्गलिक कर्मके कारण हैं ५७ पाद्गलिक प्राणोंकी संतति चलनेका अंतरंग कारण पृष्ठ ५८ १६६ १६७ १६७ १६७ १६८ १६९ १६९ १७० १७० १७० १७१ १७१ १७१ १७२ १७२ १७२ १७३ १७३ १७३ १७४ विषय-सूची पौद्गलिक प्राणोंकी संतति रोकनेका अंतरंग कारण व्यवहार जीवकी चतुर्गतिरूप पर्यायका स्वरूप जीवकी नर-नारकादि पर्यायें स्वभावपर्यायसे भिन्न विभावरूप हैं ६१ जीवका स्वरूपास्तित्व स्वपर विभागका कारण है। आत्माका परद्रव्यके साथ संयोग होनेका कारण कौन उपयोग किस कर्मका कारण है शुभोपयोगका स्वरूप अशुभोपयोगका स्वरूप शुद्धोपयोगका स्वरूप | शरीरादि परद्रव्योंमें आत्माका मध्यस्थभाव रहता है शरीर, वचन और मन तीनोंही परद्रव्य हैं। आत्माके परद्रव्य और उसके कर्तृत्वका अभाव है। स्कंध किस प्रकार बनता है आत्मा द्विप्रदेशादि स्कंधोंका कर्ता नहीं है | आत्मा पुलस्कंधोको खींचकर लानेवाला नहीं है गाथा | आत्मा पुद्गलपिंडको कर्मरूप नहीं परिणमाता ५९ ६० ६२ ६३ ६४ ६५ ६६ ६७ ६८ ६९ ७५ ७६ ७७ | शरीराकार परिणत पुद्गलपिंडोंका कर्ता जीव नहीं है। ७८ ७९ ८० पचासी | आत्माके शरीरका अभाव है जीवका असाधारण लक्षण अमूर्त आत्माका मूर्त पौद्गलिक कर्मोंके साथ बंध कैसे होता है इस विषयपर पूर्वपक्ष ओर सिद्धातपक्ष पृष्ठ १७४ १७४ १७५ ७० १७७ ७१-७४ १७८-१७९ १७५ १७५ १७६ १७६ १७६ १७६ १७७ १७७ १८० १८० १८० १८१ १८१ १८१ ८१-८२ १८२
SR No.009555
Book TitleKundakunda Bharti
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year2007
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size92 MB
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