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________________ छियासी भावबंधका स्वरूप द्रव्यबंध का स्वरूप पुद्गलबंध, जीवबंध ओर उभयबंधका स्वरूप द्रव्यबंध भावबंधहेतुक है रागादि परिणामरूप भावबंधही निश्चयसे बंध है जीवका परिणाम ही बंधका कारण है शुभ परिणाम पुण्य, अशुभ परिणाम पाप और शद्ध परिणाम कर्मक्षयका कारण है स्थावर और त्रस निकाय जीवसे भिन्न हैं स्वपरका भेदविज्ञानही स्वप्रवृत्ति और पर निवृत्तिका कारण है आत्मा स्वभावका ही कर्ता है, पुद्गल द्रव्यरूप कर्मादिका नहीं इसका उत्तर अभेदनयसे रागादिरूप परिणमन करनेवाला आत्मा ही बंध कहलाता है निश्चयबंध और व्यवहार बंधका स्वरूप अशुद्ध नयसे अशुद्ध आत्माकी ही प्राप्ति होती है। गाथा ८३ ८४ शुद्ध नयसे शुद्ध नयका लाभ होता है ८५ ८६ ८७ ८८ ८९ ९० ९३ पुद्गलपरिणाम आत्माका कर्म नहीं है आत्मा पुद्गल कर्मोंके द्वारा क्यों ग्रहण किया जाता और क्यों छोड़ा जाता है? इसका उत्तर पुद्गल कर्मोंमें ज्ञानावरणादिकी विचित्रता किसकी की हुई है ९४ ९१ ९२ ९५ ९६ ९७ ९८ ९९ पृष्ठ १८३ १८३ १८४ १८४ १८४ १८५ १८५ १८५ १८५ १८६ १८६ १८६ १८७ १८७ १८८ १८८ १८८ कुंदकुंद-भारती नित्य होनेसे शुद्ध आत्मा ही ग्रहण करनेयोग्य है विनाशीक होनेके कारण आत्मासे भिन्न पदार्थ ग्राह्य नहीं हैं शुद्धात्माकी उपलब्धिसे मोहकी गाँठ खुलती है | मोहकी गाँठ खुलनेसे अक्षय सुख प्राप्त होता है आत्मध्यान किसके हो सकता है इसका उत्तर केवली भगवान् किसका ध्यान करते हैं इस विषयपर पूर्वपक्ष | ओर उत्तरपक्ष शुद्धात्माकी प्राप्ति ही मोक्षका मार्ग है गाथा १०० यदि दुःखसे छुटकारा चाहते हो तो मुनिपद ग्रहण करो मुनि होनेका इच्छुक पहले क्या-क्या करे इसका उपदेश सिद्धिके कारण भूत बाह्यलिंग और अंतरलिंगका वर्णन श्रमण कौन होता है? | मुनिके मूलगुणोंका वर्णन इनमें प्रमाद करनेवाला मुनि छेदोपस्थापक होता है आचार्योंके प्रव्रज्यादायक और छेदोपस्थापक इन दो भेदोंका १०१ १०२ १०३ १०४ १०५-१०६ १०७-१०८ चारित्राधिकार १ २-४ ५-६ ७ ८-९ वर्णन संयमका भंग होनेपर उसके पुनः जोड़नेकी विधि मुनिपदके भंगका कारण होनेसे परपदार्थोंका संबंध छोड़ना चाहिए १३ आत्मद्रव्यमें संबद्ध होनेसे ही मुनिपदकी पूर्णता होती है मुनिपदके भंगका कारण होनेसे १० ११-१२ १४ पृष्ठ १८९ १८९ १८९ १८९ १९० १९० १९१ १९२ १९२ १९३ १९३ १९३-१९४ १९४ १९४ १९५ १९५
SR No.009555
Book TitleKundakunda Bharti
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year2007
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size92 MB
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