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अस्सी
कुंदकुंद-भारती
गाथा २३२
पृष्ठ ९३
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अमूढदृष्टि अंगका स्वरूप उपगूहन अंगका स्वरूप स्थितिकरण अंगका स्वरूप वात्सल्य अंगका स्वरूप प्रभावना अंगका स्वरूप
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उत्तर
२३५
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९३
८३ ८४
६
१९३
९४
८५ ८५
९४-९५
८६
९५-९७
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गाथा शुद्धात्माकी उपलब्धिसे ही संवर क्यों होता है? इसका उत्तर १८६ संवर किस प्रकार होता है? इसका
१८७-१८९ संवर किस क्रमसे होता है? १९०-१९२
निर्जराधिकार निर्जराका स्वरूप भावनिर्जराका स्वरूप १९४ ज्ञानकी सामर्थ्य
१९५ वैराग्यकी सामर्थ्य १९६-१९७ सम्यग्दृष्टि जीव सामान्य रूपसे निज और परको इस प्रकार जानता है १९८ सम्यग्दृष्टि जीव विशेष रूपसे निज और परको इस प्रकार जानता है
१९९-२०० समदृष्टि रागी क्यों नहीं होता है? इसका उत्तर
२०१-२०३ ज्ञानमें भेद क्षयोपशमनिमित्तक है २०४ यदि कर्मोंसे छुटकारा चाहता है तो ज्ञानको ग्रहण कर २०५-२०६ ज्ञानी परद्रव्यको ग्रहण क्यों नहीं करता? इसका उत्तर
२०७-२०८ शरीरादि परद्रव्य मेरा परिग्रह किसी भी प्रकार नहीं है २०९-२१५ ज्ञानी जीव अनागत भोगोंकी आकांक्षा क्यों नहीं करता?
२१६ ज्ञानी जीव सभी उपभोगोंसे विरक्त रहता है
२१७ ज्ञानी कर्मबंधसे रहित होता है २१८-२२३ सराग परिणामोंसे बंध और वीतराग परिणामोंसे मोक्ष होता है २२४-२२७ सम्यग्दृष्टि जीव निःशंक तथा निर्भय रहता है
२२८ निःशंकित अंगका स्वरूप निःकांक्षित अंगका स्वरूप २३० निर्विचिकित्सित अंगका स्वरूप २३१
८६-८७ ८७
८७
९८-९९
बंधाधिकार बंधका कारण रागादि भाव हैं २३७-२४१ उपयोगमें रागादिभाव न होनेसे सम्यग्दृष्टिके कर्मबंध नहीं होता इसका दृष्टांत द्वारा । स्पष्टीकरण
२४२-२४६ अज्ञानी और ज्ञानी जीवकी विचारधारा २४७ 'मैं दूसरेकी हिंसा करता हूँ' इत्यादि विचार अज्ञान क्यों हैं?
२४८-२५९ मिथ्याध्यवसाय बंधका कारण है २६०-०६१ हिंसाका अध्यवसाय ही हिंसा है २६२ असत्य वचन आदिका अध्यवसाय भी बंधका कारण है २६३-२६४ बाह्य वस्तु बंधका कारण नहीं है २६५ अध्यवसायके अनुसार कार्यकी परिणति नहीं होती २६६-२६७ रागादिके अध्यवसायसे मोहितहुआ जीव समस्त परद्रव्योंको अपना समझता है
२६८-२६९ अध्यवसानसे रहित मनि कर्मबंधसे लिप्त नहीं है अध्यवसानकी नामावली २७१ व्यवहार नय निश्चय नयके द्वारा प्रतिषिद्ध है
२७२ अभव्यके द्वारा व्यवहार नयका आश्रय क्यों किया जाता है?
२७३ अभव्य ग्यारह अंगोंका पाठी होकर भी अज्ञानी है
२७४-२७५ व्यवहार और निश्चयका स्वरूप तथा प्रतिषेध्य-प्रतिषेधकपना २७६-२७७ रागादि होनेका कारण क्या है? २७८-२७९
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