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________________ ज्ञानी रागादिका कर्ता क्यों नहीं है? अज्ञानी रागादिका कर्ता है ज्ञानीको रागादिका अकर्ता क्यों कहते हैं? २८० २८१-२८२ इसका उत्तर द्रव्य और भावमें निमित्त नैमित्तिकपनका दृष्टांत द्वारा समर्थन २८३-२८५ गाथा मोक्षाधिकार बंधका स्वरूप और कारण जानने मात्रसे मोक्ष नहीं होता बंधकी चिंता करनेपर भी बंध नहीं कटता २९१-२९२ अपराध क्या है? विषकुंभ और अमृतकुंभ २८६-२८७ वंधकसे विरक्त रहनेवाला भी कर्ममोक्ष करता है २९३ आत्मा और बंध पृथक् पृथक् किससे किये जाते हैं। आत्मा और बंधक पृथक् करनेका प्रयोजन २९४ २८८-२९० २९५ प्रज्ञाके द्वारा आत्माका ग्रहण किस प्रकार करना चाहिए? २९६- ३०० अपराध बंधका कारण है इसकी दृष्टांत द्वारा सिद्धि ३०१-३०३ ३०४-३०५ ३०६-३०७ सर्वविशुद्ध ज्ञानाधिकार आत्मा अकर्ता है इसका दृष्टांत पूर्वक कथन ३०८-३११ आत्माका ज्ञानावरणादिके साथ बंध होना अज्ञानका माहात्म्य है आत्मा, अज्ञानी, मिथ्यादृष्टि कब तक रहता है? ३१२-३१३ अज्ञानी ही कर्मफलका वेदन करता है, ज्ञानी नहीं ३१६ अज्ञानी ही भोक्ता है ३१७ ज्ञानी अभोक्ता ही है ३१८-३२० ३१४-३१५ विषय-सूची पृष्ठ आत्माको कर्ता माननेवाले १०२ अज्ञानी हैं १०२ १०२-१०३ ३२४-३२७ १०३ जीवके मिथ्यात्व भावका कर्ता कौन है? १०४ ३३२-३४४ क्षणिकवादका निषेध ३४५-३४८ १०४ क्षणिकवादका दृष्टांतद्वारा निषेध ३२१-३२३ १०६ १०७ १०८ गाथा निश्चय नयसे आत्माका पुद्गल कर्मके | साथ कर्ताकर्म संबंध नहीं है ३४९-३५५ १०५ निश्चय और व्यवहारके कथनका दृष्टांत द्वारा स्पष्टीकरण ३५६-३६५ १०५ | अज्ञानसे आत्मा अपना ही घात करता है ३६६-३७१ १०५ सभी द्रव्य स्वभावसे उपजते हैं ३७२ आत्मा स्वयं ही अज्ञानी और मोही १०५-१०६ होकर शब्दादिको ग्रहण १०९ ११० यह युक्तिसे सिद्ध है ३२८-३३१ इसीका विस्तारसे स्पष्टीकरण करता है ३७३-३८२ प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान, आलोचना और चारित्रका स्वरूप ३८३-३८६ कर्मफलको जाननेवाला जीव | अष्टविध कर्मोंको बाँधता है ३८७-३८९ ज्ञान, ज्ञेयसे पृथक् है ३९०-४०७ १०९ लिंग मोक्षका मार्ग नहीं है ४०८-४११ मोक्षमार्गमें रत रहनेका उपदेश ४११ बाह्य लिंगोंमें ममता रखनेवाले जीव | समयसारको नहीं जानते हैं। ४१३ व्यवहारनय, मुनि और श्रावकके लिंग-वेषको मोक्षमार्ग मानता है, परंतु निश्चयनय नहीं । | समयसारके पढ़नेका फल ११० ११० ११८-१२० इक्यासी १११ पृष्ठ ११२ ११३ ११३-११४ ११५ ११६ ११७ ११८ ११९ ११९-१२० १२०-१२१ १२१ १२२-१२४ १२४ १२४ १२५ ४१४ १२५ ४१५ १२५
SR No.009555
Book TitleKundakunda Bharti
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year2007
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size92 MB
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