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________________ विषय-सूची उनासी १०१ MMA १०२ गाथा पृष्ठ गाथा पृष्ठ इसका उत्तर ९४-९६६४-६५ पक्षातिक्रांत ही समयसार है १४४ ७३ ज्ञानसे जीवका कर्तापन नष्ट होता है ९७ ६५ | पुण्यपापाधिकार व्यवहारी लोगोंके कथनका निरूपण ९८-९९ ६५ शुभाशुभ कर्मोंका स्वभाव १४५ ७५ निमित्तनैमित्तिक भावसे भी आत्मा घटादि शुभाशुभ कर्मबंधके कारण हैं १४६-१४९ ७५ परद्रव्योंका कर्ता नहीं है १०० राग बंधका कारण है १५० ७६ ज्ञानी ज्ञानका ही कर्ता है ज्ञानही मोक्षका हेतु है १५१ ७६ अज्ञानी भी परभावका कर्ता नहीं है परमार्थमें स्थित न रहनेवाले पुरुषोंका परभाव किसीके द्वारा नहीं किया जा सकता १०३ तपश्चरण बालतप है १५२ ७६ आत्मा पुद्गल कर्मोंका अकर्ता है १०४ ६६ ज्ञान मोक्षका और अज्ञान बंधका आत्मा द्रव्यकर्म करता है यह उपचार कथन है कारण है १५३ ७६ १०५-१०८ परमार्थसे बाह्य पुरुष अज्ञानसेपुण्यकी यदि पुद्गलकर्मको जीव करता है तो दूसरा इच्छा करते हैं १५४ ७६ कौन करता है? १०९-११२ ६८ परमार्थभूत मोक्षका कारण १५५ ७७ जीव और प्रत्ययोंमें एकपना नहीं है व्यवहारमार्गसे कर्मोंका क्षय नहीं होता १५६ ७७ ११३-११५६८ कर्म, मोक्षके कारणभूत सम्यग्दर्शनादि सांख्यमतानुयायी शिष्यके प्रति पुद्गल द्रव्यका गुणोंका आच्छादन करते हैं इसका दृष्टांत परिणाम स्वभाव किस प्रकार सिद्ध होता है? द्वारा समर्थन १५७-१५२७७-७८ ११६-१२०६९ आस्त्रवाधिकार सांख्य मतानुयायी शिष्यके प्रति जीवका आस्रवका स्वरूप १६४-१६५ ७८ परिणामीपना किस प्रकार सिद्ध होता है? ज्ञानी जीवके आस्रवोंका अभाव १२१-१२५ ६९-७० होता है १६६ ७९ आत्मा जिस समय जो भाव करता राग, द्वेष, मोह ही आस्रव हैं १६७ है उस समय वह उसका कर्ता रागिदिरहित शुद्ध भाव असंभव होता है १२६ ७० नहीं हैं १६८ ७९ अज्ञानमय भावसे क्या होता है ज्ञानी जीवके द्रव्यास्रवका अभाव है १६९ और ज्ञानमय भावसे क्या होता है? १२७ ७१ ज्ञानी जीव निरास्रव क्यों है? १७० ८० ज्ञानी जीवके ज्ञानमय भाव होता है और अज्ञानी ज्ञानगुणका जघन्य परिणाम बंधका जीवके अज्ञानमय भाव,इसका कारण क्या है? कारण कैसे है? इसका उत्तर १७१-१७२ ८० १२८-१३६ ७१-७२ द्रव्यप्रत्ययके रहते हुए भी ज्ञानी जीवका परिणाम पुद्गलद्रव्यसे जुदा है १३७-१३८ ७२ । निरास्रव किस प्रकार है? इसका उत्तर पुद्गल द्रव्यका कार्यरूप परिणमन जीवसे १७३-१८० ८१-८२ १३९-१४० ७३ संवराधिकार कर्म आत्मामें बद्धस्पष्ट है या अबद्धस्पृष्ट? |संवरका श्रेष्ठ उपाय भेद विज्ञानहै १८१-१८३ ८२ इसका नयविवक्षासे उत्तर १४१ ७३ भेदविज्ञानसे शुद्धात्माकी उपलब्धि समयसार नयपक्षोंसे परे है किस प्रकार होती है? इसका उत्तर पक्षातिक्रांतका स्वरूप १४३ १८४-१८५ ८२-८३ जुदा है ७३
SR No.009555
Book TitleKundakunda Bharti
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year2007
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size92 MB
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