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________________ अठहत्तर गाथा निश्चयनयसे किस प्रकार होती है? ३१-३३ ५२ ही प्रत्याख्यान है इसका दृष्टांत सहित कथन परपदार्थों में भिन्नपना किस प्रकार होता है? रत्नत्रयरूप परिणत आत्माका चिंतन किस प्रकार होता है? मिथ्यादृष्टि दुर्बुद्धि जीव आत्माको नहीं जानते हैं रागदिक भाव चैतन्यसे संबद्ध होनेपर भी पुद्गल किस प्रकार कहे जाते हैं? अध्यवसान भाव व्यवहारसे जीवके हैं। इसका दृष्टांतसहित कथन ४६-४८ जीवका वास्तविक स्वरूप क्या है? ४९ जीवके रसादिक नहीं हैं ५०-५५ ज्ञान ६७ ६८ ३४-३५ कर्तृकर्माधिकार जबतक यह जीव आत्मा और आस्रवकी विशेषताको नहीं जानता है तबतक कर्मबंध करता है कर्ताकर्मी प्रवृत्तिका अभाव कब होता है? इसका उत्तर ज्ञानभावसे बंधका अभाव किस प्रकार होता है ? यह जीव आस्रवोंसे किस विधिसे निवृत्त होता है? भेदज्ञान और आस्रवकी निवृत्ति ३६-३७ ३९-४४ वर्णादिक व्यवहारसे जीवके हैं निश्चयसे नहीं ५६ वर्णादिक जीवके क्यों नहीं हैं इसका उत्तर ५७ दृष्टांतद्वारा व्यवहार और निश्चयका ५८-६० अविरोध वर्णादिके साथ जीवका तादात्म्य क्यों नहीं है? इसका उत्तर ६१-६६ ज्ञानधन आत्माको छोड़कर अन्यको जीव कहना व्यवहार है। रागादि भाव जीव नहीं है ३८ ४५ ६९-७० ७१ ७२ ७३ कुंदकुंद-भारती पृष्ठ ५२ पौद्गलिक कर्मको जाननेवाले जीवका पुद्गलके साथ कर्ता कर्मभाव है या नहीं? ५३ इसका उत्तर अपने परिणामको जाननेवाले जीवका ५३ पुद्गलके साथ कर्तृकर्मभाव है या नहीं? इसका उत्तर ५३-५४ पुद्गलकर्मके फलको जाननेवाले जीव | पुद्गल के साथ कर्ता कर्मभाव है या नहीं? ५४ इसका उत्तर ५४-५५ ५५ ५५-५६ ५६ ५६ एक ही समय होती है ज्ञानी आत्माकी पहिचान ५६-५७ ५७-५८ ५८ ५८ जीव और पुद्गलमें परस्पर निमित्तपना होनेपर भी कर्तृकर्मभाव नहीं है। निश्चयनयसे आत्माके कर्तृकर्मभाव और भोक्तृभोग्य भावका वर्णन व्यवहार नयसे आत्माके कर्तृकर्मभाव | और भोक्तृभोग्यभावका वर्णन व्यवहार नयका मत दोषयुक्त क्यों है? दो क्रियाओंका अनुभव करनेवाला जीव मिथ्यादृष्टि क्यों है? इसका उत्तर मिथ्यात्व आदिका जीव अजीवके भेदसे दो भेद हैं गाथा ७४ ७५ ७६ ७७ जीवके परिणामको, अपने परिणामको और अपने परिणामके फलको नहीं जाननेवाले पुद्गल द्रव्यका जीवके साथ कर्तृकर्मभाव है या नहीं? इसका उत्तर | मिथ्यात्वादिक अजीव और जीवका पृथक् पृथक् वर्णन ५९ मिथ्यात्व आदि भाव चैतन्यपरिणामके विकार क्यों हैं? इसका उत्तर ५९ जब आत्मा मिथ्यात्वादि तीन विकाररूप | परिणमन करता है तब पुद्गल स्वयं ५९ कर्मरूप परिणत हो जाता है। अज्ञान ही कर्मोंका करनेवाला है ६० ज्ञानसे कर्म उत्पन्न नहीं होते अज्ञानसे कर्म क्यों उत्पन्न होते हैं? ७८ ७९ ८०-८१ ८२-८३ ८४ ८५ ८६ ८७ ८८ पृष्ठ ६० ६० ९१ ९२ ९३ ६० ६१ ६१ ६१ ६१ ६१-६२ ६२ ६२ ६२ ६३ ६३ ८९-९० ६३-६४ ६४ ६४ ६४
SR No.009555
Book TitleKundakunda Bharti
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year2007
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size92 MB
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