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________________ प्रस्तावना बाद। परवर्ती ग्रंथकारोंमें किसीने शौचका वर्णन पहले किया है और किसीने सत्यका । जैसे परसंतावयकारणवयणं मोत्तूण सपरहिदवयणं । जो वददि भिक्खु तुरियो तस्स दु धम्मं हवे सच्चं । ।७४ ।। कंखाभावणिवित्तिं किच्चा वेरग्गभावणाजुत्तो । जो वट्टदि परममुणी तस्स दु धम्मो हवे सौच्चं । । ७५ ।। -- तिहत्तर इस 'वारसणुवेक्खा' के अंतमें कुंदकुंद स्वामीने अपना नाम भी दिया है। जैसे इदि णिच्छयववहारं जं भणियं कुंदकुंदमुणिणाहे । जो भाव सुद्धमणो सो पावइ परमणिव्वाणं । । ९१।। यह रचना अल्पकाय होनेपर भी आत्मकल्यामकी भावनासे परिपूर्ण होनेके कारण अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। भत्तिसंगहो सिद्धभक्तिकी संस्कृत टीकामें श्री प्रभाचंद्रने लिखा है कि 'संस्कृताः सर्वा भक्तयः पूज्यपादस्वामिकृताः प्राकृतास्तु कुन्दकुन्दाचार्यकृताः । ' संस्कृत भाषाकी समस्त भक्तियाँ पूज्यपाद स्वामीकृत हैं और प्राकृतकी समस्त भक्तियाँ कुंदकुंदाचार्यकृत हैं। प्रभाचंद्रजीके इस उल्लेखके आधारपर ही यहाँ प्राकृत भाषाकी निम्नलिखित भक्तियोंका संग्रह किया गया है -- १. सिद्धभक्ति, २. श्रुतभक्ति, ३. चारित्रभक्ति, ४. योगिभक्ति, ५. आचार्यभक्ति, ६. निर्वाणभक्ति, ७. पंचपरमेष्ठिभक्ति और ८. तीर्थकर भक्ति । भक्ति प्राकृत पद्यात्मक हैं। इन सबके अंतमें अचलिका रूपमें 'इच्छामि भंते' आदि संक्षिप्त गद्य दिया है। नन्दीश्वर भक्ति और शान्तिभक्ति केवल गद्यमें हैं, इन्हें सम्मिलित कर देनेसे दश भक्तियाँ हो जाती हैं। समाजमें 'दशभक्ति संग्रह' नामसे इनके अनेक संग्रह प्रकाशित हुए हैं। ये भक्तियाँ मुनियोंके नित्यपाठमें सम्मिलित हैं। भक्तियोंका विषय उनके नामसे ही स्पष्ट हैं। -- आभार प्रदर्शन इस तरह हम देखते हैं कि कुंदकुंद स्वामीने अपने समस्त ग्रंथों में जो तत्त्वका निरूपण किया है वह मुमुक्षु मानव के लिए अत्यंत ग्राह्य है। कुंदकुंद स्वामीकी वाणी सितोपल मिश्रीके समान सब ओरसे शब्द, अर्थ और भावकी दृष्टिसे सुमधुर है। इनके ग्रंथोंका स्वाध्याय विद्वत्समाजमें बड़ी श्रद्धासे होता है। कितने ही विद्वानोंमें इन ग्रंथोंके पुण्यपाठकी परंपरा प्रचलित है। पुण्यपाठके समय अर्थपाठपर भी दृष्टि जा सके इस अभिप्रायसे प्रत्येक गाथाओंके नीचे उनका सरल भाषामें संक्षिप्त हिंदी अर्थ दिया गया है। जहाँ आवश्यक प्रतीत हुआ वहाँ भावार्थ भी दिया गया है। प्रस्तावनामें कुंदकुंद स्वामीके जीवनपथका यथाशक्य परिचय दिया गया है। साथ ही प्रत्येक ग्रंथका संक्षिप्त सार भी दिया है। इसे मनोयोगसे पढ़नेपर ग्रंथका संपूर्ण भाव हृदयपर अंकित हो जाता है। प्रत्येक ग्रंथका सार देनेसे यद्यपि प्रस्तावनाका कलेवर बढ़ गया है तो भी ऐतिहासिक गुप्तियोंकी विस्तारकी अपेक्षा इसे देना मैंने सार्थक समझा, क्योंकि जनसाधारण इससे लाभ उठा सकता है। परिशिष्टमें प्रत्येक ग्रंथकी पृथक् पृथक् अनुक्रमणिकाएँ तथा प्रारंभमें प्रत्येक ग्रंथकी पृथक् पृथक् विषयसूचियाँ भी दी गयी हैं इससे प्रत्येक अध्येताको इष्ट विषयके अन्वेषणमें साहाय्य प्राप्त होगा । प्रस्तावना लेखमें श्रीमान् स्व. आचार्य जुगलकिशोरजी मुख्त्यारके 'पुरातन वाक्यसूची', श्रीमान् पं. कैलाशचंद्र
SR No.009555
Book TitleKundakunda Bharti
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year2007
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size92 MB
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