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कुंदकुंद-भारती
पाँच समय करीब एक लाख रुपयोंकी राशि इकट्ठा हुई। इस कार्यके लिए एक अस्थायी समितिका गठन किया गया और श्रीमान वालचंद देवचंद शहा मुंबई की सूचनानुसार धवला ग्रंथ रासायनिक प्रक्रियाद्वारा ताम्रपत्रों पर उत्कीर्ण करनेका निर्णय लिया गया। प.पू. १०८ श्री समंतभद्र महाराजजीकी सूचनानुसार प्रस्तुत समितिका मंत्रिपद का कार्यभार श्रीमान वालचंद देवचंद शहा पर सौंपा गया।
वीर निर्वाण संवत् २४७१ की फाल्गुन वदि २ को आचार्यश्रीके बारामतीके वास्तव्यमें मूर्धन्य पंडितों एवं धर्मानुरागी श्रावकोंकी उपस्थितिमें निम्न निर्णय लिये गये --
१. श्री धवल, जयधवल, श्री महाधवल आदि सिद्धांतग्रंथ संशोधनपूर्वक देवनागरी लिपिमें ताम्रपत्रपर अंकित कर उनकी सुरक्षा की स्थायी व्यवस्था की जाये।
२. अन्य आचार्योंके ग्रंथोंके जीर्णोद्धारके साथ ही स्वाध्यायके निमित्त उनका विनामूल्य अथवा अल्प मूल्य लेकर वितरण किया जाये ।
इन प्रमुख उद्देश्योंको लेकर श्री १०८ चारित्र चक्रवर्ती आचार्य शांतिसागर दिगंबर जैन जिनवाणी जीर्णोद्धारक संस्थाकी स्थापना की गयी। इस कार्यमें रु. ११०१/- अथवा अधिक दानराशि देनेवाले महानुभावोंको इस संस्थाका सदस्यत्व प्रदान किया जाये ऐसा भी प्रावधान किया गया। सभी सदस्योंको मुद्रित ग्रंथ की एक-एक प्रति दी जाये, तथैव सभी तीर्थक्षेत्रोंपर एक-एक संच रक्खा जाये ऐसा भी निर्णय लिया गया।
सिद्धांत ग्रंथ अतिप्राचीन एवं महत्त्वपूर्ण होनेसे उसके ताम्रपत्र भी शुद्ध एवं स्वच्छ होना नितांत आवश्यक था। धवला ग्रंथ ७०००० श्लोकप्रमाण, जयधवल ८०००० श्लोकप्रमाण तथा महाधवल ४०००० श्लोकप्रमाण हैं। ताड़पत्र दिन-प्रतिदिन जीर्ण होते जा रहे थे, अतः ताड़पत्रकी फोटोप्रतियाँ बनानेका निर्णय किया गया। इस कार्यमें मूडबिद्रीके विश्वस्तोंका तथा चारुकीर्तिजी भट्टारक, पं. लोकनाथ शास्त्री एवं प. वर्धमान शास्त्री, सोलापुर का सहयोग प्राप्त हुआ।
विक्रम संवत् २००१ में पं. खूबचंद शास्त्रीजीकी देखरेखमें धवला ग्रंथके मुद्रणका कार्य आरंभ हुआ। यह कार्य शीघ्र संपन्न हो इस हेतु संवत् २००२ में सोलापुरमें कल्याण प्रेसमें पं. पन्नालालजी सोनी की देखरेखमें कार्य आरंभ हुआ। यह कार्य साढ़े तीन वर्षों में संपन्न हुआ। २६०० पृष्ठोंके इस धवल ग्रंथोंके मुद्रणार्थ ३०००० रुपये खर्च हुआ। उसी समय मुंबईमें श्रीपाद प्रोसेस वर्क्स में ग्रंथ ताम्रपत्रोंपर ग्रंथ उत्कीर्ण करनेका कार्य आरंभ हो चुका था। इस कार्यमें २१००० रुपये व्यय हुए। इस तरह मुद्रणकार्य तथा उत्कीरण कार्य सफलतापूर्वक संपन्न हुआ और संवत् २००६ में संघपति श्रीमान सेठ गेंदामलजीके करकमलोंद्वारा प्रस्तुत ग्रंथ प. पू. आचार्यश्रीजी को सिद्धक्षेत्र गजपंथजी पर समर्पित किया गया।
श्रीमान पं. पन्नालालजी सोनी एवं प. माणिकचंदजी की देखरेखमें बाहुबली में २३०० पृष्ठोंका जयधवल ग्रंथ वीर निर्वाण संवत् २४७९ में पूर्णरूपेण मुद्रित हुआ। श्री महाधवल ग्रंथका मुद्रणकार्य पं.