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कुंदकुंद-भारती सुमेरुचंद्रजी दिवाकरकी देखरेखमें सीवनीमें संवत् २०२० में पूर्ण हुआ। पं. दिवाकरजी को फलटणमें 'धर्मदिवाकर'की उपाधिसे सम्मानित किया गया। उक्त तीनों ग्रंथोंके ताम्रपट बनानेका कार्य आचार्यश्रीजीकी सल्लेखनासे पूर्वही संपन्न हुआ, यह देखकर आचार्यश्रीजी को परमसंतोष हुआ।
श्री धवल के ताम्रपत्र एवं तीनों मुद्रित ग्रंथ तथा संस्थाकी ओरसे मुद्रित-प्रकाशित अन्य सभी ग्रंथ फलटणमें चंद्रप्रभु मंदिरमें श्री आचार्य शांतिसागर श्रुतभंडार भवनमें सुरक्षित हैं। श्री धवल तथा महाधवलके ताम्रपत्र सेठ गेंदामलजीके कालबादेवी, मुंबई स्थित जिनमंदिरमें सुरक्षित हैं। जयधवलके ९२ ताम्रपत्र श्री १००८ दिगंबर जैन आदिनाथ मंदिर, सोलापुरमें सुरक्षित हैं।
गृहस्थोंके कल्याणहेतु आचार्यश्री जिनबिंबप्रतिष्ठा, चैत्यालयनिर्माण, पूजापाठ आदि शुभकार्योंका उपदेश निरंतर दिया करते थे। जैन समाज धर्मश्रद्धालु है, परंतु उसके दृढ़ीकरणके हेतु आगमग्रंथोंकी सहज उपलब्धता नितांत आवश्यक है। इस हेतु संवत् २०१० में श्रुतभंडार व ग्रंथप्रकाशन समिति का गठन कर इस तरह की योजना बनायी गयी थी कि आर्ष दिगंबर जैन ग्रंथोंका प्रामाणिक संशोधन, मुद्रण व प्रकाशन कर सभी मंदिरों एवं सार्वजनिक संस्थाओं में उनका निःशुल्क वितरण किया जाये।
श्री दिगंबर जैन महासभा द्वारा पू. आचार्यश्रीका हीरक जयंती महोत्सव महान उत्साहके साथ संपन्न कर उससे प्राप्त निधिद्वारा चंद्रप्रभु मंदिरमें श्रुतभंडार हॉलकी निर्मिति की गयी और वहाँ ताम्रपत्र तथा मुद्रित ग्रंथ रखे गये। उस समय प्राचीन ग्रंथोंके हिंदी अनुवाद कर तथा उन्हें प्रकाशित कर सभी गाँवोंके मंदिरोंमें स्वाध्यायार्थ उनके निःशुल्क वितरणका कार्यभार ग्रंथ प्रकाशन समितिपर सौंपा गया। प्रस्तुत समिति यह कार्य निरंतर करती आयी है। ग्रंथनिर्मितिके लिए अनेक उदारधी दातारोंसे दानराशि प्राप्त होती आयी है। समितिकी ओरसे अबतक निम्न ग्रंथ प्रकाशित हो चुके हैं (१) श्री रत्नकरंड श्रावकाचार , (२) श्री समयसार आत्मख्याति टीका, (३) श्री सर्वार्थसिद्धि, (४) श्री मूलाचार , (५) श्री उत्तरपुराण, (६) श्री अनगार धर्मामृत, (७) श्री सागार धर्मामृत, (८) श्री धवला, (९) श्री जयधवल, (१०) श्री कुंदकुंद भारती, (११) अष्टपाहुड, (१२) श्रावकाचार संग्रह भाग १ से ५, (१३) श्री आदिपुराण (जिनसेनाचार्य), (१४) महापुराण भाग १, (१५) भ. महावीर उपदेश परंपरा, (१६) अर्थप्रकाशिका, (१७) लघुतत्त्वस्फोट, (१८) समयसार भाग १, २, (१९) षटखंडागम, (२०) स्मृतिगंध, (२१) प. पू. शांतिसागर चरित्र, (२२) श्री महाधवल।
संस्थाका कार्य १९७४ तक सुचारु रूपसे चल रहा था। १९७४ में संस्थाका रौप्यमहोत्सव तथा आचार्यश्रीजी का जन्मशताब्दी महोत्सव भी अत्यंत उत्साहके साथ मनाया गया। इस उपलक्ष्यमें 'स्मृतिगंध'का प्रकाशन भी हुआ। किंतु इसके उपरांत एक-एक करके संस्थाके विश्वस्तोंका तथा कार्यकारिणीके सदस्योंका निधन होता गया। दुर्दैवसे उन रिक्त स्थानोंकी पूर्ति नहीं हो पायी। संस्थाके कोषाध्यक्ष श्रीमान सेठ माणिकलाल तुलजाराम शहा २००१ में रुग्ण हुए तथा १७ अप्रैल २००३ को उनका देहावसान हुआ। इन कारणोंसे