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भाक्तसग्रह
हो और मुझे जिनेंद्र भगवान्के गुणोंकी संप्राप्ति हो।। १. अतिशय भक्तिके नामपर २१ वीं गाथाके आगे निम्नांकित गाथाएँ प्रक्षिप्त हो गयी हैं --
पासं तह अहिणंदण णायद्दहि मंगलाउरे वंदे।
अस्सारम्मे पट्टणि मुणिसुव्वओ तहेव वंदामि।।१।। नागहृदमें पार्श्वनाथ, मंगलापुरमें अभिनंदन और आशारम्य नगरमें मुनिसुव्रतनाथकी वंदना करता हूँ।।१।।
बाहूबलि तह वंदमि, पोदनपुर हत्थिनापुरे वंदे।
संती कुंथुव अरिहो वाराणसीए सुपास पासं च।।२।। पोदनपुरमें बाहुबली, हस्तिनापुर में शांति, कुंथु और अरनाथ तथा वाराणसीमें सुपार्श्व और पार्श्वनाथ को वंदना करता हूँ।।२।।
महुराए अहिछत्ते वीरं पासं तहेव वंदामि।
जंबुमुणिंदो वंदे णिव्वुइपत्तोवि जंबुवणगहणे।।३।। मथुरामें भगवान् महावीर, अहिच्छत्रनगरमें पार्श्वनाथ और जंबू नामक सघन वनमें निर्वाणको प्राप्त हुए जंबूस्वामीको नमस्कार करता हूँ।।३।।
पंचकल्लाणठाणइ जाणवि संजादमच्चलोयम्मि।
मणवयणकायसुद्धो सव्वे सिरसा णमंसामि।।४।। मनुष्यलोकमें पंचकल्याणकोंके जितने भी स्थान हैं मन वचन कायसे शुद्ध होकर उन सबको शिरसे नमस्कार करता हूँ।।४।।
अग्गलदेवं वंदमि वरणयरे णिवडकुंडली वंदे।
पासं सिरिपुरि वंदमि लोहागिरि संख दीवम्मि।।५।। वरनगरमें अर्गलदेवको तथा निवडकुंडली (?) को वंदना करता हूँ। श्रीपुर, लोहागिरि और शंखद्वीपके पार्श्वनाथको नमस्कार करता हूँ।।५।।
गोम्मटदेवं वंदमि, पंचसमधणुहदेहउच्चं तं।
देवा कुणंति वुट्ठी, केसरकुसमाण तस्स उवरिम्मि।।६।। जिनका शरीर पाँचसौ धनुष्य ऊँचा है ऐसे गोम्मटस्वामीको नमस्कार करता हूँ। उनके ऊपर देव केशर और पुष्पोंकी वर्षा करते हैं।।६।।
णिव्वाणठाण जाणि वि, अइसयठाणाणि अइसये सहिया।
संजादमच्चलोए सव्वे सिरसा णमंसामि।।७।। मनुष्यलोकमें जितने निर्वाणस्थान और अतिशयोंसे सहित स्थान हैं उन सबको मैं शिरसे नमस्कार करता हूँ।।७।।
_जो जण पढइ तियालं णिव्वुइकंडंपि भावसुद्धीए।
भुंजदि णरसुरसुक्खं पच्छा सो लहइ णिव्वाणं ।।८।। जो मनुष्य भावशुद्धिपूर्वक तीनों कालमें निर्वाणकांडको पढ़ता है वह मनुष्य और देवोंके सुखको भोगता है और पश्चात् निर्वाणको प्राप्त होता है।।८।।