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________________ ३८६ कुदकुद-भारता ८. नंदीश्वरभक्ति अंचलिका इच्छामि भंते! नंदीसरभत्तिकाउस्सग्गो कओ तस्सालोचेउ। णंदीसरदीवम्मि चउदिसविदिसासु अंजणदधिमुहरदिपुरुणवावरेसु जाणि जिणचेइयाणि ताणि सव्वाणि तिसुवि लोएसु भवणवासियवाणविंतरजोइसियकप्पवासियत्ति चउविहा देवा सपरिवारा दिव्वेहि गंधेहि, दिव्वेहि पुप्फेहि, दिव्वेहि धूपेहि, दिव्वेहि चुण्णेहि, दिव्वेहि वासेहि, दिव्वेहि ण्हाणेहि आसाढकत्तियफागुणमासाणं अट्ठमिमाइं काऊण जाव पुण्णिमंति णिच्चकालं अच्चंति, पूजंति, वंदंति, णमंसंति णंदीसरमहाकल्लाणं करंति, अहमवि, इह संतो तत्थ संताई णिच्चकालं अंचेमि, पूजेमि, वंदामि, णमंसामि, दुक्खक्खओ कम्मक्खओ, बोहिलाहो, सुगइगमणं, समाहिमरणं, जिणगुणसंपत्ति होउ मज्झं।। __ हे भगवन्! मैंने नंदीश्वर भक्तिसंबंधी कायोत्सर्ग किया है। उसकी आलोचना करना चाहता हूँ। नंदीश्वर द्वीपकी चारों दिशाओं तथा विदिशाओंमें अंजनगिरि, दधिमुख तथा रतिकर नामक विशाल -- श्रेष्ठ पर्वतोंपर जो जिनप्रतिमाएँ हैं उन सबको त्रिलोकवर्ती भवनवासी, व्यंतर, ज्योतिषी और कल्पवासी ये चार प्रकारके देव परिवारसहित दिव्य गंध, दिव्य पुष्प, दिव्य धूप, दिव्य चूर्ण, दिव्य सुगंधित पदार्थ और दिव्य अभिषेक द्वारा आषाढ़, कार्तिक और फागुन मासकी अष्टमीसे लेकर पूर्णिमापर्यंत त्रिकाल अर्चा करते हैं, पूजा करते हैं, वंदना करते हैं, नमस्कार करते हैं तथा नंदीश्वर द्वीप महान् उत्सव करते हैं। हम भी यहाँ स्थित रहते हुए वहाँ स्थित रहनेवाली उन प्रतिमाओंकी नित्यकाल अर्चा करते हैं, पूजा करते हैं, वंदना करते हैं, नमस्कार करते हैं। इसके फलस्वरूप हमारे दुःखोंका क्षय हो, कर्मोंका क्षय हो, रत्नत्रयकी प्राप्ति हो, सुगतिमें गमन हो, समाधिमरण हो और जिनेंद्र भगवान्के गुणोंकी संप्राप्ति हो।। *** ९. शांतिभक्ति अंचलिका इच्छामि भते! संतिभत्तिकाउस्सगो कओ तस्सालोचे। पंचमहाकल्लाणसंपण्णाणं, अट्ठमहापाडिहेरसंहियाणं, चउतीसातिसयविसेससंजुत्ताणं, बत्तीसदेवेंदमणिमउडमत्थयमहियाणं बलदेववासुदेवचक्कहररिसिमुणिजदिअणगारोवगूढाणं थुइसहस्सणिलयाणं,
SR No.009555
Book TitleKundakunda Bharti
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year2007
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size92 MB
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