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__अष्टपाहुड
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ध्यान नहीं हो सकता है।।७३।।
सम्मत्तणाणरहिओ, अभब्वजीवो हु मोक्खपरिमुक्को।
संसारसुहे सुरदो, ण हु कालो भणइ झाणस्स।।७४।। जो सम्यक्त्व तथा सम्यग्ज्ञानसे रहित है, जिसे कभी मोक्ष नहीं होता है तथा जो संसारसंबंधी सुखमें अत्यंत रत है ऐसा अभव्य जीव ही कहता है कि यह ध्यानका काल नहीं है, अर्थात् इस समय ध्यान नहीं हो सकता।।७४।।
पंचसु महब्वदेसु य, पंचसु समिदीसु तीसु गुत्तीसु।
जो मूढो अण्णाणी, ण हु कालो भणइ झाणस्स।।७५।। जो पाँच महाव्रतों, पाँच समितियों तथा तीन गुप्तियोंके विषयमें मूढ़ है और अज्ञानी है वही कहता है कि यह ज्ञानका काल नहीं है, अर्थात् इस समय ध्यान नहीं हो सकता।।७५ ।।
भरहे दुःसमकाले, धम्मज्झाणं हवेइ साहुस्स।
तं अप्पसहावठिदे, ण हु मण्णइ सो हु अण्णाणी।।७६।। भरत क्षेत्रमें दुःषम नामक पंचम कालमें मुनिके धर्म्यध्यान होता है तथा वह धर्म्यध्यान आत्मस्वभावमें स्थित साधुके होता है ऐसा जो नहीं मानता वह अज्ञानी है।।७६।।
अज्ज वि तिरयणसुद्धा, अप्पा झाएवि लहइ इंदत्तं ।
लोयंतियदेवत्तं, तत्थ चुआ णिव्वुदिं जंति।।७७।। आज भी रत्नत्रयसे शुद्धताको प्राप्त हुए मनुष्य आत्माका ध्यान कर इंद्रपद तथा लौकांतिक देवोंके पदको प्राप्त होते हैं और वहाँसे च्युत होकर निर्वाणको प्राप्त होते हैं।।७७।।
जे पावमोहियमई, लिंगं घेत्तूण जिणवरिंदाणं।
पावं कुणंति पावा, ते चत्ता मोक्खमग्गम्मि।।७८ ।। जो पापसे मोहितबुद्धि मनुष्य जिनेंद्रदेवका लिंग धारण कर पाप करते हैं वे पापी मोक्षमार्गसे पतित हैं।।७८।।
जे पंचचेलसत्ता, गंथग्गाहीय जायणासीला।
आधाकम्मम्मि रया, ते चत्ता मोक्खमग्गम्मि।।७९।। जो पाँच प्रकारके वस्त्रोंमें आसक्त हैं, परिग्रहको ग्रहण करनेवाले हैं, याचना करते हैं तथा अधःकर्म -- निंद्य कर्ममें रत हैं वे मुनि मोक्षमार्गसे पतित हैं।। १. १. अंडज -- कोशा आदि। २. बुंडज -- सूती वस्त्र । ३. वल्कज -- सन तथा जूट आदिसे निर्मित। ४. चर्मज -- चमड़ेसे उत्पन्न और ५. रोमज -- ऊनी वस्त्र। ये पाँच प्रकारके वस्त्र हैं।