________________
नियमसार
जस्स सणिहिदो अप्पा, संजमे णियमे तवे ।
तस्स सामाइगं ठाई, इदि केवलिसासणे । । १२७ ।।
जिसका आत्मा संयम, नियम तथा तपमें सन्निहित रहता है उसके स्थायी सामायिक होता है ऐसा
केवली भगवान्के शासनमें कहा गया है । । १२७ ।।
२४५
जस रागो दु दोसो दु, विगडिं ण जणेदि दु ।
तस्स सामाइगं ठाई, इदि केवलिसासणे । ।१२८ ।।
राग और द्वेष जिसके विकार उत्पन्न नहीं करते हैं उसके स्थायी सामायिक होता है ऐसा केवली भगवान् के शासनमें कहा गया है । । १२८ ।।
जो दु अट्ट च रुद्द च, झाणं वच्चेदि णिच्चसा ।
तस्स सामाइगं ठाई, इदि केवलिसासणे । । १२९ ।।
जो निरंतर आर्त और रौद्र ध्यानका परित्याग करता है उसके स्थायी सामायिक होता है ऐसा केवली भगवान्के शासनमें कहा गया है । । १२९ ।।
जो दु पुणं च पावंच, भावं वच्चेदि णिच्चसा ।
तस्स सामाइगं ठाई, इदि केवलिसासणे । । १३०।।
जो निरंतर पुण्य और पापरूप भावको छोड़ता है उसके स्थायी सामायिक होता है ऐसा केवली भगवान् के शासनमें कहा गया है । । १३० ।।
जो दुहस्सं रई सोगं, अरतिं वज्जेदि णिच्चसा । तस्स सामाइगं ठाई, इदि केवलिसासणे । । १३१ । ।
जो दुगंछा भयं वेदं सव्वं वज्जदि णिच्चसा ।
तस्स सामाइगं ठाई, इदि केवलिसासणे । । १३२ । ।
जो निरंतर हास्य, रति, शोक और अरतिका परित्याग करता है उसके स्थायी सामायिक होता है
ऐसा केवली भगवान्के शासनमें कहा गया है । । १३१ ।।
जो निरंतर जुगुप्सा, भय और सब प्रकारके वेदोंको छोड़ता है उसके स्थायी सामायिक होता है ऐसा केवली भगवान्के शासनमें कहा गया है । । १३२ ।।
जो दुधम्मं च सुक्कं झाणं झाएदि णिच्चसा ।
तस्स सामाइगं ठाई, इदि केवलिसासणे । । १३३ ।।
जो निरंतर धर्म्य और शुक्ल ध्यानका ध्यान करता है उसके स्थायी सामायिक होता है ऐसा केवली