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________________ नियमसार २३७ चत्ता ह्यगुत्तिभावं, तिगुत्तिगुत्तो हवेइ जो साहू। सो पडिकमणं उच्चइ, पडिकमणमओ हवे जम्हा।।८८।। जो साधु अगुप्तिभावको छोड़कर तीन गुप्तियोंसे गुप्त -- सुरक्षित रहता है वह प्रतिक्रमण कहा जाता है, क्योंकि वह प्रतिक्रमणमय होता है।।८८ ।। मोत्तूण अट्टरुदं, झाणं जो झादि धम्मसुक्कं वा। __ सो पडिकमणं उच्चइ, जिणवरणिहिट्ठसुत्तेसु।।८९।। जो आर्त और रौद्र ध्यानको छोड़कर धर्म्य अथवा शुक्ल ध्यान करता है वह जिनेंद्र भगवान्के द्वारा कथित शास्त्रोंमें प्रतिक्रमण कहा जाता है।।८९।। मिच्छत्तपहुदिभावा, पुव्वं जीवेण भाविया सुइरं। सम्मत्तपहुदिभावा, अभाविया होंति जीवेण।।९०।। जीवने पहले चिरकालतक मिथ्यात्व आदि भाव भाये हैं। सम्यक्त्व आदि भाव जीवने नहीं भाये हैं।।१०।। मिच्छादसणणाणचरित्तं चइऊण णिरवसेसेण। सम्मत्तणाणचरणं, जो भावइ सो पडिक्कमणं ।।११।। जो संपूर्ण रूपसे मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान और मिथ्याचारित्रको छोड़कर सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्रकी भावना करता है वह प्रतिक्रमण है।।९१।।। आत्मध्यान ही प्रतिक्रमण है उत्तमअटुं आदा, तम्हि ठिदा हणदि मुणिवरा कम्म। तम्हा दु झाणमेव हि, उत्तमअट्ठस्स पडिकमणं ।।१२।। उत्तमार्थ आत्मा है, उसमें स्थिर मुनिवर कर्मका घात करते हैं इसलिए उत्तमार्थ -- उत्कृष्ट पदार्थ आत्माका ध्यान करना ही प्रतिक्रमण है।।९२।। झाणणिलीणो साहू, परिचागं कुणइ सव्वदोसाणं। तम्हा दु झाणमेव हि, सव्वदिचारस्स पडिकमणं ।।९३।। ध्यानमें विलीन साधु सब दोषोंका परित्याग करता है इसलिए निश्चयसे ध्यान ही सब अतिचारों -- समस्त दोषोंका प्रतिक्रमण है।।९३।। व्यवहार प्रतिक्रमणका वर्णन पडिकमणणामधेये, सुत्ते जह वण्णिदं पडिक्कमणं। तह णच्चा जो भावइ, तस्स सदा होइ पडिक्कमणं ।।९४ ।।
SR No.009555
Book TitleKundakunda Bharti
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year2007
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size92 MB
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