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कुदकुद-भारता
प्रतिक्रमण नामक शास्त्रमें जिस प्रकार प्रतिक्रमणका वर्णन किया है उसे जानकर जो उसकी भावना करता है उस समय उसके प्रतिक्रमण होता है।।९४ ।।
इस प्रकार श्री कुंदकुंदाचार्य विरचित नियमसार ग्रंथमें परमार्थप्रतिक्रमण नामका
पाँचवाँ अधिकार पूर्ण हुआ।।५।।।
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निश्चयप्रत्याख्यानाधिकार
मोत्तूण सयलजप्पमणागयसुहमसुहवारणं किच्चा।
अप्पाणं जो झायदि, पच्चक्खाणं हवे तस्स।।१५।। जो समस्त वचनजालको छोड़कर तथा आगामी शुभ-अशुभका निवारण कर आत्माका ध्यान करता है उसके प्रत्याख्यान होता है।।९५।।।
आत्माका ध्यान किस प्रकार किया जाता है? केवलणाणसहावो, केवलदसणसहाव सुहमइओ।
केवलसत्तिसहावो, सोहं इदि चिंतए णाणी।।९६।। ज्ञानी जीवको इस प्रकार चिंतन करना चाहिए कि मैं केवलज्ञानस्वभाव हूँ, केवलदर्शनस्वभाव हूँ, सुखमय हूँ और केवलशक्तिस्वभाव हूँ।
भावार्थ -- ज्ञान, दर्शन, सुख और वीर्य ही मेरे स्वभाव हैं, अन्य भाव विभाव हैं। इस प्रकार ज्ञानी जीव आत्माका ध्यान करते हैं।।९६।।
णियभावं णइ मुच्चइ, परभावं व गेण्हए केइं।
जाणदि पस्सदि सव्वं, सोहं इदि चिंतए णाणी।।९७।। जो निजभावको नहीं छोड़ता है, परभावको कुछ भी ग्रहण नहीं करता है, मात्र सबको जानता देखता है वह मैं हूँ, इस प्रकार ज्ञानी जीवको चिंतन करना चाहिए।।९७ ।।
पयडिट्ठिदिअणुभागप्पदेसबंधेहिं वज्जिदो अप्पा। सोहं इदि चिंतिज्जो, तत्थेव य कुणदि थिरभावं ।।९८ ।।