________________
कुदकु५-भारता
स्वभावस्थान नहीं हैं। निश्चयनय जीवके कर्मबंधको स्वीकृत नहीं करता इसलिए कर्मोंके निमित्तसे होनेवाली अवस्थाएँ भी जीवकी नहीं हैं।।४१।।
चउगइभवसंभमणं, जाइजरामरणरोयसोका य।
कुलजोणिजीवमग्गणठाणा जीवस्स णो संति।।४२।। जीवके चतुर्गतिरूप संसारमें परिभ्रमण, जन्म, जरा, मरण, रोग, शोक, कुल, योनि, जीवस्थान और मार्गणास्थान नहीं हैं।।४२।।
णिदंडो णिबंदो, णिम्ममो णिक्कलो णिरालंबो।
णीरागो णिद्दोसो, णिम्मूढो णिब्भयो अप्पा।।४३।। आत्मा निर्दंड -- मन वचन कायके व्यापारसे रहित है, निर्द्वद्व है, निर्मम है, निष्कल -- शरीररहित है, निरालंब है, नीराग है, निर्मूढ़ है और निर्भय है।।४३।।
णिग्गंथो णीरागो, णिस्सल्लो सयलदोसणिम्मुक्को।
णिक्कामो णिक्कोहो, णिम्माणो णिम्मदो अप्पा।।४४।। आत्मा निग्रंथ है, नीराग है, निःशल्य है, सकल दोषोंसे निर्मुक्त है, निष्काम है, निष्क्रोध है, निर्मान है और निर्मद है।।४४।।
वण्णरसगंधफासा, थीपुंसणओसयादिपज्जाया।
संठाणा संहणणा, सव्वे जीवस्स णो संति।।४५।। वर्ण, रस, गंध, स्पर्श, स्त्री, पुरुष, नपुंसकादि पर्याय, संस्थान और संहननादि पर्याय ये सभी जीवके नहीं हैं।।४५।।
तब फिर जीव कैसा है? अरसमरूवमगंधं, अव्वत्तं चेदणागुणसमुदं।
जाण अलिंगग्गहणं, जीवमणिविसंठाणं।।४६।। जीवको रसरहित, रूपरहित, गंधरहित (अतएव बाह्यमें) अव्यक्त -- अप्रकट, चेतनागुणसे सहित, शब्दरहित, लिंग अर्थात् इंद्रियोंके द्वारा अग्राह्य और किसी निर्दिष्ट आकारसे रहित जानो।।४६।।
जारिसिया सिद्धप्पा, भवमल्लिय जीव तारिसा होति।
जरमरणजम्ममुक्का, अट्ठगुणालंकिया जेण।।४७।। जैसे सिद्धात्माएँ हैं वैसे ही संसारी जीव हैं, क्योंकि (स्वभावदृष्टिसे भी) जरा, मरण और जन्मसे रहित तथा सम्यक्त्वादि आठ गुणोंसे अलंकृत हैं।।४७।।
असरीरा अविणासा, अणिंदिया णिम्मला विसुद्धप्पा।