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प्रवचनसार
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जिनमार्गमें यथार्थजातरूप -- निग्रंथ मुद्रा, गुरुओंके वचन, उनकी विनय और शास्त्रोंका अध्ययन ये उपकरण कहे गये हैं।
जिनके द्वारा परम वीतरागरूप शुद्ध आत्मदशाकी प्राप्तिमें सहयोग प्राप्त हो उन्हें उपकरण कहते हैं। ऐसे उपकरण जिनशासनमें निम्नलिखित ४ माने गये हैं। १. सद्योजात बालकके समान निर्विकार दिगंबर मुद्रा, २. पूज्य गुरुओंके वचनानुसार प्रवृत्ति करना, ३. गुण तथा गुणाधिक मुनियोंकी विनय करना
और ४. शास्त्र अध्ययन करना। यथार्थ आत्माकी शुद्ध दशाकी प्राप्तिमें इन्हीं कारणोंसे साक्षात् सहयोग प्राप्त होता है इसलिए ये ही वास्तविक उपकरण हैं। परंतु ये चारों ही सहजानंदरूप शुद्धात्मद्रव्यसे बहिर्भूत शरीररूप पुद्गल द्रव्यके आश्रित हैं अतः परिग्रह हैं और त्याज्य हैं।।२५।।
पहले कह आये हैं कि मुनिके शरीरमात्र परिग्रह होता है। अब आगे उसके पालनकी विधिका
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पेच्छदि ण हि इह लोगं परं च समणिंददेसिदो धम्मो। धम्मम्हि तम्हि कहा वियप्पियं लिंगमित्थीणं ।।१।। णिच्छयदो इत्थीणं सिद्धी ण हि तेण जम्मणा दिट्ठा। तम्हा तप्पडिरूवं वियप्पियं लिंगमित्थीणं ।।२।। पइडीपमादमइया एतासिं वित्ति भासिया पमदा। तम्हा ताओ पमदा पमादबहुलोत्ति णिद्दिठ्ठा ।।३।। संति धुवं पमदाणं मोहपदोसा भयं दुगुंछा य। चित्ते चित्ता माया तम्हा तासिं ण णिव्वाणं।।४।। ण विणा वट्टदि णारी एक्कं वा तेसु जीवलोयम्हि। ण हि संउणं च गत्तं तम्हा तासिं च संवरणं ।।५।। चित्तस्सावो तासिं सिथिल्लं अत्तवं च पक्खलणं। विज्जदि सहसा तासु अ उप्पादो सुहममणुआणं ।।६।। लिंगम्हि य इत्थीणं थणंतरे णाहिकखपदेसेसु । भणिदो सुहुमुप्पादो तासिं कह संजमो होदि।।७।। जदि दंसणेण सुद्धा सुत्तज्झयणेण चावि संजुत्ता। घोरं चरदि य चरियं इत्थिस्स ण णिज्जरा भणिदा।।८।। तम्हा तं पडिरूवं लिंगं तासिं जिणेहि णिद्दिद। फलरूववओजुत्ता समणीओ तस्समाचारा।।९।। वण्णेसु तीसु एक्को कल्लाणंगो तवोसहो वयसा। सुमुहो कुंछारहिदो लिंगग्गहणे हवदि जोग्गो।।१०।। जो रयणत्तयणासो सो भंगो जिणवरेहि णिद्दिट्ठो। सेसं भंगेण पुणो ण होदि सल्लेहणा अरिहो।।११।।