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________________ १८८ कुन्दकुन्द-भारती प्राप्त होता है तब 'यह आत्माका बंध है ऐसा न कहकर अभेदनयसे 'यह बंध है' ऐसा कहा जाने लगता है। इस दृष्टिसे आत्मा ही बंध है ऐसा कथन सिद्ध हो जाता है।।९६ ।। आगे निश्चयबंध और व्यवहारबंध का स्वरूप दिखलाते हैं -- एसो बंधसमासो, जीवाणं णिच्चएण णिद्दिट्ठो। अरहंतेहिं जदीणं, ववहारो अण्णहा भणिदो।।९७ ।। जीवोंके जो रागादि भाव हैं वे ही निश्चयसे बंध हैं इस प्रकार बंध तत्त्वकी संक्षिप्त व्याख्या अर्हत भगवान्ने मुनियोंके लिए बतलायी है। व्यवहारबंध इससे विपरीत कहा है अर्थात् आत्माके साथ कर्मोंका जो एक क्षेत्रावगाह होता है वह व्यवहारबंध है।।९७ ।। आगे अशुद्धनयसे अशुद्ध आत्माकी ही प्राप्ति होती है ऐसा उपदेश करते हैं -- ण जहदि जो दु ममत्तिं, अहं ममेदत्ति देहदविणेसु। सो सामण्णं चत्ता, पडिवण्णो होइ उम्मग्गं।।१८।। जो पुरुष शरीर तथा धनादिकमें 'मैं इन रूप हूँ और 'ये मेरे हैं इस प्रकारकी ममत्वबुद्धिको नहीं छोड़ता है वह शुद्धात्मपरिणति रूप मुनिमार्गको छोड़कर अशुद्ध परिणतिरूप उन्मार्गको प्राप्त होता है। शरीर तथा धनादिकको अपना बतलाना अशुद्ध नयका काम है, इसलिए जो अशुद्ध नयसे शरीरादिमें अहंता और ममताको नहीं छोड़ता वह मुनि पदसे भ्रष्ट होकर मिथ्यामार्गको प्राप्त होता है अतः अशुद्ध नयका आलंबन छोड़कर सदा शुद्ध नयका ही आलंबन ग्रहण करना चाहिए।।९८ ।। आगे शुद्धनयसे शुद्धात्माका लाभ होता है ऐसा निश्चय करते हैं -- णाहं होमि परेसिं, ण मे परे संति णाणमहमेक्को । इदि जो झायदि झाणे, सो अप्पाणं हवदि झादा।।९९।। 'मैं शरीरादि परद्रव्योंका नहीं हूँ और ये शरीरादि परपदार्थ भी मेरे नहीं हैं। मैं तो एक ज्ञानरूप हूँ' इस प्रकार जो ध्यानमें अपने शुद्ध आत्माका चिंतन करता है वही ध्याता है -- वास्तविक ध्यान करनेवाला है। शुद्धनय शुद्धात्माको शरीर धनादि बाह्य पदार्थोंसे भिन्न बतलाता है। इसलिए उसका आलंबन लेकर जो अपने आपको बाह्य पदार्थोंसे असंपृक्त --शुद्ध -- टंकोत्कीर्ण ज्ञान स्वभाव अनुभव करता है वह शुद्धात्माको प्राप्त होता है और वही सच्चा ध्याता कहलाता है।।९९।। आगे नित्य होनेसे शुद्ध आत्मा ही ग्रहण करनेयोग्य है ऐसा उपदेश देते हैं --
SR No.009555
Book TitleKundakunda Bharti
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year2007
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size92 MB
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