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________________ प्रवचनसार परिणामादो बंधो, परिणामो रागदोसमोहजुदो। असुहो मोहपदेसो, सुहो व असुहो हवदि रागो।।८८।। जीवके परिणामसे द्रव्यबंध होता है, वह परिणाम राग द्वेष तथा मोहसे सहित होता है, उनमें मोह और द्वेष अशुभ हैं तथा राग शुभ और अशुभ दोनों प्रकारका है।।८८ ।। माला आगे द्रव्यरूप पुण्यपाप बंधका कारण होनेसे शुभाशुभ परिणामोंकी क्रमश: पुण्य-पाप संज्ञा है और शुभाशुभ भावसे रहित शुद्धोपयोगरूप परिणाम मोक्षका कारण है यह कहते हैं -- सुहपरिणामो पुण्णं, असुहो पावत्ति भणियमण्णेसु। परिणामो णण्णगदो, दुक्खक्खयकारणं समये।।८९।। निज शुद्धात्म द्रव्यसे अन्य -- बहिर्भूत शुभाशुभ पदार्थों में जो शुभ परिणाम है उसे पुण्य और जो अशुभ परिणाम है उसे पाप कहा है। तथा अन्य पदार्थोंसे हटकर निजशुद्धात्म द्रव्यमें जो परिणाम है वह आगममें दुःखक्षयका कारण बतलाया गया है। ऐसा परिणाम शुद्ध कहलाता है।।८९।। आगे जीवकी स्वद्रव्यमें प्रवृत्ति और परद्रव्यसे निवृत्ति करनेके लिए स्वपरका भेद दिखलाते the भणिदा पुढविप्पमुहा, जीवनिकायाध थावरा य तसा। अण्णा ते जीवादो, जीवोवि य तेहिंदो अण्णो।।१०।। पृथिवीको आदि लेकर स्थावर और नसरूप जो जीवोंके छह निकाय कहे गये हैं वे सब जीवसे भिन्न हैं और जीव भी उनसे भिन्न हैं। यह त्रस और स्थावरका विकल्प शरीरजन्य है। वास्तवमें जीवन त्रस है न स्थावर है। वह तो शुद्ध चैतन्य घनानंदरूप आत्मद्रव्य मात्र है।।१०।। आगे स्व-परका भेदज्ञान होनेसे जीवकी स्वद्रव्यमें प्रवृत्ति होती है और स्वपरका भेदज्ञान न होनेसे परद्रव्यमें प्रवृत्ति होती है यह दिखलाते हैं -- जो ण विजाणदि एवं, परमप्पाणं सहावमासेज्ज। कीरदि अज्झवसाणं, अहं ममेदत्ति मोहादो।।९१।। जो जीव इस प्रकार स्वभावको प्राप्त कर पर तथा आत्माको नहीं जानता वह मोहसे 'मैं शरीरादिरूप हूँ, ये शरीरादि मेरे हैं' ऐसा मिथ्या परिणाम करता है। जबतक इस जीवको भेदविज्ञान नहीं होता तब तक यह दर्शनमोहके उदयसे 'मैं शरीरादिरूप हूँ' ऐसा, और चारित्रमोहके उदयसे 'ये शरीरादि मेरे हैं -- मैं इनका स्वामी हूँ' ऐसा विपरीताभिनिवेश करता रहता है। यह विपरीताभिनिवेश ही संसारभ्रमणका कारण है, इसलिए इसे दूर करनेके लिए भेदविज्ञान.
SR No.009555
Book TitleKundakunda Bharti
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year2007
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size92 MB
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