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___ कुन्दकुन्द-भारती शब्द तथा द्विकोण, त्रिकोण आदि विविध प्रकारके संस्थान पुद्गलमें ही पाये जाते हैं और मूर्त होनेसे उसीका इंद्रियोंके द्वारा ग्रहण -- ज्ञान होता है, परंतु जीव उससे भिन्न है, उसका एक चेतना ही असाधारण गुण है जो समस्त जीवोंमें पाया जाता है और जीवको छोड़कर किसी अन्य द्रव्यमें नहीं पाया जाता। वह जीव अमूर्तिक है अत: इंद्रियोंके द्वारा उसका साक्षात्कार नहीं हो सकता है।।८० ।।
आगे अमूर्त आत्मामें जब स्निग्ध और रूक्ष गुणका अभाव है तब उसका पौद्गलिक कर्मोंके साथ बंध कैसे होता है? यह पूर्वपक्ष रखते हैं --
मुत्तो रूवादिगुणो, बज्झदि फासेहिं अण्णमण्णेहिं।
तविवरीदो अप्पा, बंधदि किध पोग्गलं कम्मं ।।८१।। रूपादि गुणोंसे संपन्न -- मूर्त पुद्गल द्रव्य, स्निग्धत्व-रूक्षत्व स्पर्शसे परस्परमें बंधको प्राप्त होता है यह ठीक है, परंतु उससे विपरीत आत्मा पौद्गलिक कर्मको किस प्रकार बाँधता है? ।।८१।। आगे अमूर्तिक आत्माके भी बंध होता है ऐसा सिद्धांत पक्ष रखते हैं --
रूवादिएहिं रहिदो, पेच्छदि जाणादि रूवमादीणि।
दव्वाणि गुणे य जधा, तध बंधो तेण जाणीहि ।।८।। रूपादि गुणोंसे रहित आत्मा जिस प्रकार रूप आदि से सहित घटपटादि पुद्गल द्रव्यों और उनके गुणोंको देखता तथा जानता है उसी प्रकार रूपादि गुणोंसे युक्त कर्मरूप पुद्गल द्रव्यके साथ इसका बंध होता है ऐसा जानो।
जिस प्रकार रूपादिसे रहित आत्मा रूपादि पदार्थोंको जान सकता है, देख सकता है उसी प्रकार रूपादिसे रहित आत्मा रूपादि गुणोंसे युक्त कर्मरूप पुद्गलोंको ग्रहण कर सकता है। ऐसा वस्तुका स्वभाव है। अत: इसमें कोई बाधा नहीं दिखती। अथवा इसका भाव इस प्रकार समझना चाहिए -- जैसे कोई बालक मिट्टीके बैलको अपना समझकर देखता है, जानता है, परंतु वह मिट्टीका बैल उस बालकसे सर्वथा जुदा है। जुदा होनेपर भी यदि कोई उस मिट्टीके बैलको तोड़ देता है तो वह बालक दुःखी होता है। इसी प्रकार कोई गोपाल सचमुचके बैलको देखता है, जानता है, परंतु वह बैल उस गोपालसे सर्वथा जुदा है। जुदा होनेपर भी यदि कोई उस बैलको चुरा लेता है या नष्ट कर देता है तो वह गोपाल दुःखी होता है। जबकि उक्त दोनोंही प्रकारके बैल बालक तथा गोपालसे जुदे हैं तब वे उनके अभावमें दुःखी क्यों होते हैं? इससे यह बात विचारमें आती है कि वे बालक और गोपाल उन बैलोंको अपना देखते जानते हैं। इस कारण अपने परिणामोंसे बँध रहे हैं। उनका ज्ञान बैलके निमित्तसे तदाकार परिणत हो रहा है इसलिए परस्वरूप बैलोंसे संबंधका व्यवहार आ जाता है। इसी प्रकार इस आत्माका कर्मरूप पुद्गलके साथ कुछ संबंध नहीं है, परंतु अनादि कालसे एक क्षेत्रावगाह कर ठहरे हुए पुद्गलोंके निमित्तसे जीवमें राग-द्वेषादि