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________________ समयसार ज्ञानी जीव अनेक प्रकारके पौद्गलिक कर्मोको जानता हुआ भी निश्चयसे परद्रव्य तथा परपर्यायस्वरूप न परिणमन करता है, न उन्हें ग्रहण करता है और न उनमें उत्पन्न ही होता है।।७६।। आगे अपने परिणामको जाननेवाले जीवका पुद्गलके साथ कर्तृ-कर्मभाव है अथवा नहीं? इस प्रश्नका उत्तर कहते हैं -- णवि परिणमदि ण गिण्हदि, उप्पज्जदि ण परदव्वपज्जाये। णाणी जाणंतो वि हु, सगपरिणामं अणेयविहं ।।७७।। ज्ञानी जीव अनेक प्रकारके अपने परिणामोंको जानता हुआ भी परद्रव्य तथा पर पर्यायरूप न परिणमन करता है, न उन्हें ग्रहण करता है और न उनमें उत्पन्न होता है।।७७।। आगे पुद्गल कर्मके फलको जाननेवाले जीवका पुद्गलके साथ कर्तृकर्मभाव है अथवा नहीं? इस प्रश्नका उत्तर कहते हैं -- णवि परिणमदि ण गिण्हदि, उप्पज्जदि ण परदव्वपज्जाए। णाणी जाणतो वि हु, पुग्गलकम्मएफलमणंतं।।७८।। ज्ञानी जीव अनंत पुद्गलकर्मके फलको जानता हुआ भी पर द्रव्य और पर पर्यायस्वरूप न परिणमन करता है, न उन्हें ग्रहण करता है और न उनमें उत्पन्न ही होता है।७८ ।। आगे जीवके परिणामको, अपने परिणामको और अपने परिणामके फलको नहीं जाननेवाले पुद्गल द्रव्यका जीवके साथ कर्तृकर्मभाव है अथवा नहीं? इस प्रश्नका उत्तर कहते हैं -- णवि परिणमदि ण गिण्हदि, उप्पज्जदि ण परदव्वपज्जाए। पुग्गलदव्वं पि तहा, परिणमइ सएहिं भावेहिं ।।७९।। पुद्गल द्रव्य भी परद्रव्य तथा परपर्यायरूप न परिणमन करता है, न उन्हें ग्रहण करता है और न उनमें उत्पन्न होता है। वह जीवके ही समान अपने भावोंसे परिणमन करता है।।७९।। आगे कहते हैं कि यद्यपि जीव और पुद्गलके परिणाममें परस्पर निमित्तमात्रपना है तथापि उन दोनोंमें कर्तृकर्मभाव नहीं है --- जीवपरिणामहे, कम्मत्तं पुग्गला परिणमंति। पुग्गलकम्मणिमित्तं, तहेव जीवो वि परिणमइ।।८।। णवि कुव्वइ कम्मगुणे, जीवो कम्मं तहेव जीवगुणे। अण्णोण्णणिमित्तेण दु, परिणाम जाण दोण्हंपि।।८१।। एएण कारणेण दु, कत्ता आदा सएण भावेण। पुग्गलकम्मकयाणं, ण दु कत्ता सव्वभावाणं।।८२।।
SR No.009555
Book TitleKundakunda Bharti
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year2007
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size92 MB
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