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________________ पंचास्तिकाय विवक्षावश औदयिक भावोंका कर्ता जीव है कम्मं वेदयमाणो, जीवो भावं करेदि जारिसयं । सो तेण तस्स कत्ता, हवदित्ति य सासणे पढिदं । । ५७ ।। उदयागत द्रव्यकर्मका वेदन करनेवाला जीव जैसा भाव करता है वह उसका कर्ता होता है ऐसा जिनशासनमें कहा गया है । । ५७ ।। औदयिक आदि भाव द्रव्यकर्मकृत हैं। कम्मेण विणा उदयं, जीवस्स ण विज्झदे उवसमं वा । १७ खइयं खओवसमियं, तम्हा भावं तु कम्मकदं ।। ५८ ।। यतः द्रव्यकर्मके बिना आत्माके रागादि विभावोंका उदय और उपशम नहीं हो सकता तथा क्षायिक और क्षायोपशमिक भाव भी नहीं हो सकते अतः जीवके उल्लिखित चारों भाव द्रव्यकर्मके किये हुए हैं ।। ५८ ।। प्रश्न भावो जदि कम्मकदो, अत्ता कम्मस्स होदि किध कत्ता । कुत्ता किंचिवि, मुत्ता अण्णं सगं भावं । । ५९ ।। यदि औदयिक आदि भाव द्रव्यकर्मके द्वारा किये हुए हैं तो आत्मा द्रव्यकर्मका कर्ता कैसे हो सकता है? क्योंकि वह निजभावको छोड़कर अन्य किसीका कर्ता नहीं है। यदि सर्वथा द्रव्यकर्मको औदयिक आदि भावोंका कर्ता माना जाय तो आत्मा अकर्ता हो जायगा और ऐसी दशामें संसारका अभाव हो जायेगा । यदि यह कहा जाय कि आत्मा द्रव्यकर्मका कर्ता है अतः संसारका अभाव नहीं होगा तो द्रव्यकर्मको जो कि पुद्गलका परिणाम है आत्मा कैसे कर सकता है? और उस हालतमें, जबकि आत्मा निज स्वभावको छोड़कर अन्य किसीका कर्ता नहीं है ।। ५९ ।। उत्तर भावो कम्मणिमित्तो, कम्मं पुण भावकारणं हवदि । दु सिंख कत्ता, ण विणा भूदा दु कत्तारं । । ६० ।। व्यवहार नयसे जीवके औदियिक आदि भावोंका कर्ता द्रव्य कर्म है और द्रव्यकर्मका कर्ता भावकर्म है परंतु निश्चय नयसे द्रव्यकर्म औदयिक आदि भावोंका कर्ता नहीं है और न औदयिक आदि भावकर्म द्रव्यकर्मका कर्ता है। इसके सिवाय वे दोनों -- द्रव्यकर्म भावकर्म कर्ताके बिना भी नहीं होते हैं। कारणके दो भेद हैं-- उपादान और निमित्त । भावकर्मका उपादान कारण आत्मा है और निमित्त कारण द्रव्यकर्म । इसी प्रकार द्रव्यकर्मका उपादान कारण पुद्गल द्रव्य है और निमित्त कारण औदायिक
SR No.009555
Book TitleKundakunda Bharti
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year2007
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size92 MB
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