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१२. उदय तथा सत्त्व
१. उदय; २. सत्त्व, ३. बन्ध सत्त्व सम्मेल।
जीव के योग तथा उपयोग के निमित्त से प्रति समय एक समय-प्रबद्ध प्रमाण द्रव्य का आस्रव तथा बन्ध होता है, जो आठ प्रकृतियों में विभाजित हो जाता है। आठ प्रकृतियों को गौण करके कथन को सरल बनाने के लिये आगे उदय तथा सत्त्वादि करणों का विवेचन सामान्य रूप से करने.में आयेगा । यहाँ अपनी बुद्धि से सर्वत्र आठ विभाग स्वयं करके जान लेना।
१. उदय—जिस प्रकार प्रति समय एक समय-प्रबद्ध प्रमाण द्रव्य बंधता है, उसी प्रकार प्रति समय एक समय-प्रबद्ध प्रमाण द्रव्य उदय में आकर झड़ता है। सो कैसे वही बताता हूँ। कर्मकी अपनी-अपनी स्थिति के अनुसार उस समय-प्रबद्ध में (आठों प्रकृतियों की पृथक्-पृथक्) निषेक-रचना पड़ती है, यह पहले बताया जा चुका है (दे० अधिकार १०/२) । एक समय-प्रबद्ध का एक ही निषेक एक समय में उदय आता है । इस प्रकार उस समय-प्रबद्ध का कुल द्रव्य सम्पूर्ण स्थिति पर्यन्त, समय प्रति समय क्रम से बराबर अपना फल देता रहता है । इस प्रकार देखने पर कह सकते हैं कि कोई भी कर्म बंधता तो एक समय में है परन्तु फल अनेक समयों में देता है। वर्तमान में बंधे कर्मका कुछ भाग वर्तमान में फल देता है और कुछ भव भवान्तरों में।
जिस प्रकार एक समय-प्रबद्ध की बात पढ़ी, उसी प्रकार अगले-अगले सभी समय-प्रबद्धों के विषय में भी जानना। कल्पना करो कि वर्तमान समय में मैं कर्म बन्ध से सर्वथा शून्य हूँ । इस समय एक समय-प्रबद्ध प्रमाण द्रव्य बन्ध को प्राप्त हुआ और दूसरे तीसरे आदि समयों में बराबर दूसरा तीसरा आदि समय-प्रबद्ध बन्धता चला गया। सभी में निषेक-रचना भी होती चली गई। आबाधा काल बीतने के पश्चात् प्रथम समय-प्रबद्ध का पहला एक निषेक उदय में आया। उस समय दूसरे तीसरे
आदि समय-प्रबद्धों का कोई भी निषेक उदय में न आ सका, क्योंकि एक-एक समय पीछे बंधने के कारण उनका उदय भी पहले वाले से एक एक समय पीछे ही होना चाहिए । इस प्रकार दूसरे समय में प्रथम तथा द्वितीय दो समय-प्रबद्धों का एक एक निषेक मिलकर दो निषेक उदय में आये, प्रथम समय-प्रबद्ध का दूसरा निषेक और द्वितीय समय-प्रबद्ध का पहला निषेक । तीसरे समय प्रथम द्वितीय तथा तृतीय समय-प्रबद्धोंके एक एक निषेक मिलकर तीन निषेक उदय में आये, पहले समय-प्रबद्ध का तीसरा निषेक, द्वितीय समय-प्रबद्ध का द्वितीय निषेक और तृतीय समय-प्रबद्ध का प्रथम निषेक । इसी प्रकार क्रम से चतुर्थ, पञ्चम आदि समयों में चार पाँच आदि निषेकों का उदय जानना।