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(१२) विचर रहे हैं इसयि जानबूझकर मकरन्यान रखनाद नानक उचित नहीं है। समय पाना व्यर्थ देना उचित नहीं। सच्चे माता जिव गुलान वे ही हैं. कोकनी सन्तान उन स्थानवर देर बुशी है. हैं और उन्हें विनर कुर्ग टेने पहुंचाते हैं। हिन्दू नहीं, उन्हें त्रुहना चई इगे हे गुरु ज्नो ! कर लोगेका कर्तव्य है कि मुझे और न इस विग्ने लचर नरें और न नेगव्हजन्य स्काव्यर्थ गमा। स्त्र विद्युताने ये वचन ने और देगनिज मन्झना व्यर्थ है, न कुछ सार नहीं निकलेगावसानपरियदे ऋने मा___ वानी ने भारले हुन छल में इन्वनःपुग्ने राल दुहन्दन्ना पुत्र है। कल्यावको गहना ने गिनाने देशले निकाल दिया नत्र हुन जमकर चीक और वेश्यले यहां देता रहा । भान मी चनिने निमित वहां आया श परन्तु यह दुक देखकर चेरी करना नूल गया और लव मंतिमय विरल हुआ है. वह दमिनी ,
सी नागम जलना श्रेट है। सत्र हे वनन् : अपर मन बन मांगता हूँ मोदनिये कि नुझदेन भी करना चाणसेवक बना केन्दि च्यान् मय ले बलिये."
व बानीने यह चार भिया जैतुल हो उठकर खड़े होगय ! यह देख स्व लंग दिलतत ददन हुए, परन्तु चित्रान मत रह गये-कुछ नुहले कद नहीं निकलना था। सबके मनम यही लग रही यो, कि कुवर वाहीम म्हें और दीशनले। नगर नरमें कोम होगया, स्त्र लोग राग प्रना दौड़ जाये।