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दिन दिनभर भूखा मरके एक अंगूठी वनवाई और उसे यह सोचकर जमीनमें गाड़ दो कि यह विपत्तिमें काम आयगी । एक दिनकी बात है कि कोई वटोही जिसके पास कुछ द्रव्य था, परदेश जाते समय ऐसे ही विचारसे अपना द्रव्य टसी गलमें गाढ कर चला गया। उसे इस लकड़हारेने देखकर खोदा तो बहुत द्रव्य मिला सो प्रसन्न होकर अपनी अंगूठी भी उसीके साथ गाढ़ दी। उसे गाड़ते हुए किसी और ही बटोहीने देख लिया और वह द्रव्य वहाँसे उखाड़कर ले गया। जब लकड़हारा वहाँ आया तो भूमि खुदी हुई देखी और द्रव्य न पाया, सो हाय हाय करने और पछताने लगा कि वह लक्ष्मी गई सो गई परतु मेरी गॉठकी अंगूठी भो साथ ले गई। सो ठीक है"जो नर वह तृष्णा करे, चौरे परका वित्त ।
सो खो वेटें आपनो, सायहि परके वित्त ॥" इम प्रकार के स्वामिन् ! "परिपूरण धन होत भी, भोगे दुःख अपार । तिस सम नाथ न कीजिये, करूँ दिनय हितकार।"
यह वार्ता सुनकर स्वामी वोले-" सुन्दरी ! सुनो, किसी भयानक वनमें एक वटोही चला जा रहा था, उसे हाथीने देखा अर वह उसके पीछे लगा सो भागते २ एक कुएके किनारे झाड़ देख उसकी नड पकड़ कर कुएमें लटक रहा । उस कुएके नीचे तली में एक अमगर मुँह खोले बैठा था । वालमें चारों ओर चार साँप फग उठाये हुए फुसकारते थे। उसकी जड़को सफेद और