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पिताजी!ठक है, फिर मुझे मार कर आपको पुत्र होगा या नहीं, या कैसा होगा, इसका आपने क्या भरे सा कर लिया है ?" यह सुन काछी लजित हुआ और दोनों मिलकर घर गये इसलिये स्वानिन् ! प्रसन्न होओ। क्यों हँसी कराते हो?
इस प्रकार पद्मश्नो क्व अपनी चतुराई कर चुकी, तब स्वा. मीने कहा-"ए सुन्दरी ! सुनो, महा नदीक वटपर कोई हाथी मरा पड़ा था। उसे बहुतसे कौए नौच र कर खा रहे थे। अचानक लहर आनेसे वह मृतक कलेवर पानीपर वहने लगा सो बहुतसे कौए तो उड़ गये परंतु एक अतिशय लोभी के आ उसे खाता हुआ उसीके साथ वहने लगा। इसी प्रकार यह दश बारह कोश तक निकल गया इतनेमें एक बड़ा मगर निकला और उस कलेवरको निगल गया। तब वह लोभी का उड़ा और चाहा कि कहीं निकल जाऊँ, पर जावे कहाँ ? चारों ओर तो पानी ही पानी भर रहा था। वह बहुत इवर उवर भटका पर कहीं जान सका। निदान लाचार हो उसी नदीके प्रवाहमें गिरकर वह वह गया। सो यदि वह कौआ अधिक लोभ न करके दूसरे के ओंके समान उड़ गया होता तो इस तरह प्राण क्यों खोता ? __" वायस जो तृष्णा करी, वूड़ो सागर मांह।
मो बूड़तको कादि है, सो तुम देहु वताय ।।"
यह कथा सुन पद्मश्री निरुत्तर हुई । तब कनकधी-दुसरी स्त्री कहने लगो-“हे नाथ ! सुनो, एक पहाड़पर काई बन्दर रहता था सो एक समय अचानक पाँव चूक नानेसे नीचे पत्थरपर गिरकर मर गया और कर्म संयोगसे विद्याघर हुआ। एक दिन उसने मुनिके