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(४१) चारों स्त्रियाँ भी सलाह कर वहाँ गई और अपनी २ चतुराईसे स्वामीका मन चंचल करने और स्त्रीचरित्र फैलाने लगी।
सो चारों से प्रथम ही पन्नाश्रीने अपना जाल फैलाना आरम्भ किया। वह कहने लगी-"ए प्रीतम ! जो आप मेरे कहनेको न मानोगे तो मैं अपनी सखियों में इस तरह कहूँगी कि मेरा पति महामूर्ख है । मेरी तरफ देखता ही नहीं है ! वइ शृगाररसको विलकुल नहीं जानता है, न हास्यरस ही उसमें है। कला चतुराई तो समझता ही नहीं है, और कोकशास्त्रका तोनाम ही उसने नहीं सुना है। नायकामेद तो वैचारा क्या समझे अरी बहनो! उठो, इनके मनहीकी सही । तप कर लो, चलो दल्दीसे, जिसमें स्वर्ग मिल जाय। देखो तो इनकी वादि कहॉ गई है कि सरोवर (इन्द्रिय विषय) का छोड़कर ओसकी बूंद (स्वर्ग) की आशा करते हैं। मला, जो गोदको छोड़कर गर्भकी आस करे, उसके सिवाय और मूर्ख कसा होता है ?
तब तीनों बोलीं-"वहिन ! तू कई जसा तब पुनः पद्मश्री कहने लगी-"किसी ग्राममें एक कृषिक काछी रहता था, सो उसके घर एक कमाऊ पुत्र और स्त्री थी । काल पाकर स्त्री मर गई । तब उस काछीने और व्याह किया। जब वह नई काछिन आई, तो पतिसे प्रसन्न न हुई । पतिने कारण पूछा, तो कहा कि-"तुम अपने लड़केको मार डालो तो मैं प्रसन्न होऊँगी क्योंकि नव मेरे उदरसे चालक होगा तव यह उसे दासके समान समझेगा और बहुत दुःख देगा, इत्यादि ।"