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शब्द, हे पिताजी ! आपको कहना उचित नहीं हैं। क्या कुलवती कन्यायें कभी स्वप्नमें भी ऐसा कर सक्ती हैं कि एक पुरुषके साथ जब उनका सम्बन्ध निश्चित होगया हो और जब उन्होंने उसे अपने मनसे व्याहनेका संकल्प कर लिया हो, तो फिर वे किसी दूसरे से अपने पुनर्विवाह संबन्धकी बात को भी कानसे सुनें ? क्या आपने राजमती आदि सतियोंका चरित्र नहीं सुना है ? इसलिये और कल्पनाको छेड़ दंत्रिये और इसी समय जम्बूस्वामी के पास जाकर उनसे ये वचन ले आइये कि आप आमतो हमारी कन्याओं से व्याह्न करें और कल प्रातःकाल दीक्षा ले लें । इसमें हम लोग अपने २ कर्मकी परीक्षा करेंगी । जो हमारे उदयमें सुख या दुख आनेवाला है उसे कौन रोक सकता है ? बस, अब यही अंतिम उपाय है ! आप जायें, देर न करें ।
यद्यपि ये सेठ लोग कन्याओं के इस कथन से संतुष्ट नहीं थे, परंतु करें ही क्या ? कुछ वश नहीं रहा। वे निरुतर हो स्वामीके पास आये और आद्योपात सब वृत्तांत कहकर विनती की - ' हे नाथ ! अब हम लोगोंको यही भिक्षा मिलना चाहिये कि आज तो हमारी कन्याओं को व्याहिये और आप प्रभाव दीक्षा लीजिये | स्वामीको यद्यपि क्षण क्षण भारी हो रहा था, तथापि सेठों को अत्यन्त नम्र और दुखित देख स्वामीने ऐसा करना कबूल किया और उसी समय वराव लेकर व्याहको चले । सो उन कन्याओंको व्याह कर शामके पहिले ही विदा कराकर लौट आये । गृहव्यवहार जो थे, सो हुए । जब एक पहर रात्रि बीत गई तब दासीने सेज्या ( बिछौना ) तैयार की और स्वामी भी यथायोग्य स्वननोंसे विदा लेकर पलॅगपर जा लेटे !