________________
(१२) किये गये, सो स्वामी जीमकर शयनागारमें शयन करने चले गये।
इस प्रकार एक दिन राजा मृगांकके यहाँ वे रहे, फिर दूसरे दिन कहने लगे-" मेरी इच्छा है कि अब मै राजगृही जाऊँ" स्वामीके ऐसे वचन किसको अच्छे लगते ? वे सब हाथ जोडकर वेले-“हे नाथ! आप कुछ दिन तो और हम दीनोंके यहाँ ठहरें। अ.पके रहनेसे हम लोगोंको परम शाति मिलती है। पश्चात् आपकी इच्छाप्रमाण जो आज्ञा होगी सो ही करेंगे। हॉ! आज एक दूतके द्वारा सब कुशल समाचार रामगृही भेने देते हैं, ताकि आपके माता पिता और राना प्रजा सवको शाति मिले।"
स्वामीने यह बात स्वीकार की । राजा मृगांकने तुरंत सुवुद्ध नाम दूतको वुल कर कहा-'दूत! तुम रामगृती जाओ और वहाँ के राजा श्रेणिक तथा स्वामांके पिता अर्हदास श्रेष्ठी और माता जिनमतीसे यहॉक सब कुशल समाचार कहो और कहना कि दश दिन पछे स्वामी भी पधारेंगे" यह कहकर उनके यग्य स्वशक्ति प्रमाण भेट बनाभूषण आदि भी भेने।
रात रत्नचूल यह सुनकर बोले-" हे राजन् ! जैसी आपको सुता, वैसी हो वह अब मेरी भी सुता है सो मेरे और आपके यहाँ जो जो सार वस्तुएँ में सो सब उन्होंकी है। ऐसा दोनों रानाओंने विचार कर बहुतसे विद्याधर सेवकोंको वुलवाया और उनके हाथ बहुतसी संपत्ति देकर विदा किया। वे विद्याधर स्वामीकी आज्ञा पाकर शीघ्र ही वाकी तरह आकाश मार्गसे एक क्षण मात्रमें रामगृही आ .ये, और राना श्रेणिकके सम्मुख नमस्कार कर अल्प भेंट जो लाये थे सो अर्पण करके केवलपुरकी जीत और स्वा