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विद्या सिखाई। धन्य है वह भूमि जहाँ ये पग रखते हैं। वे वस्त्राभूषण पवित्र होगये, जिन्हें स्वामीने पहिर लिये वे नदी-नाले धन्य हैं, न्हाँ स्वामो जलक्रीडा करते है । " .
इस प्रकार नगरके नर नारी सराहना करते, और आशीर्वाद -देकर स्वामी के ऊपर पुष्पवर्षा करते थे। इस प्रकार स्वामी नगरजनोंको हर्षायमान करते और उनके द्वारा सन्मान पाते तथा सबको यथोचित पुरस्कार देते हुए चले जा रहे थे, मानों देवों के मध्य इन्द्र ही जा रहा है।
इनके अनुपम रूपको देखकर नर नारी अत्यन्त विह्वल हो जाती। कोई स्त्री वालकको दूध प्याती थीं सो स्वामीके आनेकी खवर सुन एकदम दौड़ पड़ी, वालक पृथ्वीपर जा पड़ा, उसकी उनको कुछ भी सुध न रही। कितनी अंगन दे रहीं थीं, सो एक ही ऑखमें ऑजने पाई थी, कि सवारीकी आवाज सुनकर अंजनकी डिब्बी हाथमें लिये और एक अगुली में श्याम अनन लगाये यों ही दौड़ आई। कोई पतिको परोश रही थीं सो हाथमें करछी रिये हुए ही दरवाजेसे वाहिर चली आई। कोई वस्त्र बदल रही थी सो आधा वन पहिरे उसे संभालती हुई आगई। कोई घर वुहार रही थीं सो बुहारी लिये ही चली आई। कोई: पानी भरने जा रही थीं सो रास्तेमें ही अटक रही । जो पानी भर रही थी, सो कुएमें घड़ा डाले हुए यों ही खड़ी रह गई। जो पुरुष दूकानों में बैठे हुए रोकड़ गिन रहे थे, सो स्वामीको देख एकदम उठकर खड़े हो गयेसब रोकड़ बिखर गई, पर उन्हें कुछ भी ध्यान नहीं रहा। जो तोल रहे थे सो ऐसे विह्वल हो गये कि आटेके बदले बाट ग्राहकोके