________________
वक्तव्य यह हस्तप्राप्त पुस्तक किसी सस्कृत ग्रन्थके आधारपर श्री गिनदास कविने हिन्दी भाषामें अनुवादित की थी मिसे कटनी-मुड़वारानिवासी मुन्सी नाथूराम की लमेचूने सन् १९०२ में प्रकाशित किया था, लेकिन वह अनुवाद एक तो छन्दोवद्ध था, दूसरे साधारण व्यक्ति उससे सुगमतया लाभभी नहीं उठा सक्ते थे। अतः आवश्यकता थी कि इसका एक ऐसा सरल अनुवाद प्रकाशित हो जिसे सर्वसाधारण अच्छी तरह पढ़ लिख लें। इस आवश्यकताको ध्यानमें रखकर उक्त अनुवादकं आधारपर पं. दीपचनी वर्मा नरसिंहपुर नि• ने यह अनुपाद किया है। हम आपके बहुत आभारी हैं कि जिन्होंने यह अनुवाद हमें बिना किसी स्वार्थक कर दिया है।
पुस्तककी कथा रोचक है और जनशाओं के अनुसार है। कोई भी विषय जैनशास्त्रस प्रतिकूल नहीं होने पाया है। नीति वरवक्त काम आसकती है वह कवितामें दीगई हताकि पाठक उसे कंठ थ करके सदाचारी और व्यवहारकुगल बन सकें।
यह अनुवाद प्रथमवार " दिगम्बर जैन " के उपहारमें हमारी वर्गवासिनी भगिनी नानीव्हेनके स्मरणार्थ बॉटा गया था। हप है कि समाजने इसे एमा अपनाया कि हमें इसका दूसरा स्करण वीर सं. २ ४ ४३ में निकालना पड़ाया और वह भी खत्म हो जानेसे यह तीतरी आवृत्ति प्रकट की जाती है। वीर स. २४५३ ।
मूलचंद किसनदान कारड़िया। ज्येष्ठ पुत्री ७ ॥