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(२७) "हे राजन् ! नहीं मालम एक कौन अतिवलधारी पुरुष, भो देवों से भी न जीता जाय, महारूपवान, तेजस्वी, अल्पवयस्क सुभट कहाँसे आया है, जो राजा रत्नचूलकी आठ हजार सेनाको तहस नहस कर उसके सामने लड़ रहा है । एक ओर तो वह वीर अकेला है, और दूसरी ओर रत्नचूल अपने सम्पूर्ण सैन्यसहित है। क्या गने यह अनीति देख कोई देव ही आया है, या राग श्रेणिकने सहायतार्थ किसीको भेना है"
यह समाचार सुनकर राजा मृगांकने भी शीघ्र ही अपने सेन्य सहित युद्ध क्षेत्रको प्रयाण किया और देखते ही आश्चर्यवंत होकर स्वामीसे प्रार्थना की- हे नाथआप तो रत्नचूलका सामना करें और सन्यको में देखता है। यहॉ रत्नचूलने मृगाककी सेना आते देखी, सो विस्मयवान् हो पूछा-"अरे मंत्री ! यह किसकी सेना आरही है ?" मंत्रीने उत्तर दिया-"महारान! यह राजा मृगाक सहाय पाकर सैन्य सहित आ रहा है।"
इसझे पश्चात् सेना परस्पर बड़े आवेगसे भिड़ गई और घमसान युद्ध होने लगा। हार्थासे हाथी, घोड़ेसे घोडे, प्यादेसे प्यादे लड़ने लगे, रथोंसे रथ जुटने लगे, वीरोंको जोश बढ़ने लगा
और कायरोंके हृदय फटने लगे । इस प्रकार नीतिपूर्वक युद्ध होने लगा। स्वामी भी रत्नचूलके सम्मुख युद्ध करने लगे । सो थोड़ी देरमें रत्नचूलका रथ तोड़ भूमिपर गिरा दिया और ज्यों ही रत्न चूल उठ कर दूसरे स्थपर चढ़नेवाले थे कि स्वामीने आकर जोरसे मुष्टि-प्रहार किया सिसे वह अररर' कर भूमिपर गिर गया। तब कुमारने उसकी छातीपर लात देकर दोनों हाथ वॉधकर