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________________ (१०) साथ अनेक देशोंमें विहार करते हुए वारह वर्ष पश्चात् पुनः इसी वर्धमानपुरके उद्यानमें आये। एक दिन भावदेव मुनिने मनमें विचारा कि मेरा छोटा भाई भवदेव जो तीव्र मिथ्यात्वमें फंस रहा है, उसे किसी प्रकार समझाना चाहिये । यह विचार कर श्रीगुरुको आना ले नगरमे जाकर अपने भाईके मकानमें प्रवेश किया । तब इनका छोटा भाई अपने बड़े भाईका आगमन देख अपना घन्य जन्म मान कर प्रफुल्लित हो स्तुति करने लगा। ठीक है-"छोटोको बड़ाकी विनय करना ही उचित है। " फिर उच्चासन देकर कुशल समाचार पूछा। ___ तव मुनि धर्मलाभ देकर कहने लगे, कि जो पुरुष निशदिन मिन भगवानके चरणों में आसक्त रहता है, उसके सदैव ही कुशल रहती है। इसके पश्चात् मुनिवरने सभामंडप, कंकण, केशरिया वागा आदि सामग्री, और स्त्रियोंको मंगल गान करते देख कर भवदेवसे पूछा-'यह सब क्या है ?" तब भवदेवने कहा-आज रात्रिको मेरा व्याह हुआ है इसीका यह सब उत्सव है । तब मुनिराजने कहा कि यह तो सब कर्मनंजाल है, किंतु तुम्हें कुछ धर्मका भी ख्याल है या नहीं? तवभवदेवने धर्मश्रवणकर श्रीमुनिवरसे अणुव्रत ग्रहण किये और मुनिने संघकी ओर विहार किया। सो मुनिवर तो नीची दृष्टिकर ईर्यापथ सोधते हुए धर्मध्यानमें तल्लीन हुए जा रहे हैं और भवदेव केवल लोकरीतिके अनुसार पीछे पीछे यह विचारता हुआ भरहा है कि बड़े भाई मुझे कव पंछे फिरनेकी आज्ञा दें और मैं कब शीघ्र ही घर जाकर अपनी नव विवाहिता स्त्रीसे मिल।
SR No.009552
Book TitleJambuswami Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages60
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size2 MB
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