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चतुर्थ अधिकार ।
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गये उपरोक्त धर्मोका जो निरंतर पालन करते हैं, वे ऐहिक, पारलौकिक और भतमें मोक्षप्राप्तिके अधिकारी अवश्य होते है । भगवान महावीर स्वामीके सदुपदेश सुनकर श्रेणिक आदि अनेक राजाओं और ममुष्योंने व्रत धारण किये और दीक्षा ग्रहण की।
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पश्चात् भगवान के आदेश के अनुसार संसार सागर से पार उतारनेवाले गौतम गणधर भव्यजीवोंको उपदेश देने लगे । मुनिराज गौतम स्वामीने अष्ट कर्मरूपी शत्रुओं के विनाशके हेतु कल्याणं दायक, कामानिको जलके समान शान्त करके तपश्चरण में तल्लीन हुए। एक दिन गौतम मुनिराज एकांत प्रासुक स्थानमें उपस्थित थे । वे निश्चल और ध्यान में मग्न कर्म-नाशका उद्योग कर रहे थे। भारम्भ में ही उन्होंने अधःकरण अपूर्वकरण, भनिवृति करणके द्वारा मिथ्यात्व सम्यक्मिथ्यात्व एवं सम्यक प्रकृति मिथ्यात्व ये तीन दर्शन मोहनीय प्रकृतियाँ तथा अनन्तानुबन्धी क्रोध मान, माया लोभ ये चार कषाय, इस तरह सम्यग्दर्शनमें वाधा प्रदान करने वाली इन सातों प्रकतियोंको नष्ट कर क्षपक श्रोणीमें आरूढ़ हुए । उन्होंने ध्यानके बलसे तियंव आयु. नरकायु और देवायुको नष्ट कर शेष कर्मों का नाश करनेके लिए नवें गुण स्थान प्राप्त किया । स्थावर नाम कर्म, एकेन्द्रिय जाति, द्वीन्द्रिय जाति, तेरन्द्रिय जाति चौइन्द्रिय जाति तिर्यत्र जाति, तियंत्रगत्यानुपूर्वी, नरक गति नरक गत्यानुपूत्र, साधारण आतप उद्योत, निद्रा-अनिद्रा प्रचलाप्रचला, सत्यानगृद्धि, और सुक्ष्म नामकर्म उक्त सोलह