________________
Nimin
a
re
.......
..
..
..
.............AR
७६
गौतम चरित्र। चांदी, गौ, हाथी, घोड़ा आदिका दान करते है, वे नरकगामी होते हैं। शास्त्रदानसे जीव इन्द्र होता है। वे परम देवके कल्याणकोंमें लीन रहते हैं, अनेक देवियां उनकी सेवामें तत्पर रहती हैं और उनकी आयु होती है सागरोंकी । वहांसे वे मनुष्य भवमें आकर स्त्रियों के भोग भोगते है, बड़े धनी और यशस्वी बनते हैं। वे सदा जिन भगवानकी सेवामें लीन रहते हैं मधुर भाषी होते हैं और दया आदि अनेक व्रतोंको धारण करते हैं। अन्तमें संसारके विषयोंसे विरक्त होकर जिन-दीक्षा ग्रहण कर शास्त्राभ्यासमें लीन होते हैं। उनकी प्रवृत्ति सदा परोपकारमें रहती है । पुनः वे घोर तपश्चरणके द्वारा केवलज्ञान प्राप्त कर भव्य जीवोंको धर्मोपदेश करते हैं एवं चौदहवें गुणस्थानमें पहुंच कर मोक्ष प्राप्त करते हैं। उपरोक्त व्रतोंके तुल्य व्रतके पालन करने वाले श्रावकोंको चाहिए कि वे रात्रि भोजनका सर्वथा त्याग करदें। रात्रि भोजन हिंसाका एक अंग है, पाप की वृद्धि करनेवाला.तथा उत्तम गतियोंको प्राप्त करनेमें प्रधान वाधक है । रात्रिमें जीवोंकी अधिक वृद्धि हो जाती है। भोजन में इतने छोटे-छोटे कीड़े मिल जाते है, जो दिखाई नहीं देते। इसलिए कौन ऐसा धार्मिक पुरुप होगा जो रात्रिके समय भोजन करेगा। रात्रिके समय भोजन करनेके पाप स्वरूप जीव को सिंह, उल्लू बिल्ली, काक, कुत्ते, गृद्ध और मांसभक्षी आदि नीच योनियोंमें जाना पड़ता है। जो शास्त्रपारदर्शी व्यक्ति रात्रिभोजनका परित्याग कर देते हैं, वे १५ दिन उपवास करनेका फल प्राप्त करते हैं। ऐसे ही मुनि और श्रावकोंके भेदसे कहे