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________________ winnan चतुर्थ अधिकार। का समुदाय आपकी पूजा करता है। आप तीनों लोकोंके तारक और उद्धारक हैं । आप कर्म-शत्रुओंको नाश करनेवाले हैं तथा त्रैलोक्यके इन्द्र आपकी सेवामें लगे रहते हैं। ऐसी विनम्र स्तुतिकर गौतम, भगवानके चरणों में नत हुआ। इसके पश्चात् वह ऐहिक विषयोंसे विरक्त होगया । कालान्तरमें उसने पांचसौ शिष्य मंण्डली तथा अन्य दो भ्राताओंके साथ जिन-दीक्षा लेली। सत्य है, जिन्हें संसारका भय है,जो मोक्षरूपी लक्ष्मीके उपासक हैं, वे जराभी देर नहीं करते। श्री वीरनाथ भगवानके समवशरणमें चारों ज्ञानोंसे विभूषित, इन्द्रभूति, वायुभूति, अग्निभूति आदि ग्यारह गणधर हुए थे। उन्होंने पूर्वभवमें लन्धिविधान नामक व्रत किया था, जिसके फल स्वरूप वे गणधर पद पर आसीन हुए थे। दूसरे लोग भी, जो इस व्रतका पालन करते हैं,उन्हें ऐसी ही विभूतियां प्राप्त होतीहैं। इसके बाद भगवानकी दिव्यवाणी उच्चरित होने लगी। मोहां: धकारको नाश करनेवाली वह दिव्यध्वनि भव्यरूपी कमलोंको प्रफुल्लित करने लगी। भगवानने जीव, अजीव, आदि सप्ततत्व, छः द्रव्य, पंच आस्तिकाय, जीवोंके भेद आदि लोकाकाशके पदार्थोके भेद और उनके स्वरूप बतलाये। समस्त परिग्रहों को परित्याग करनेवाले गौतमने पूर्वपुण्यके उदयसे भगवानके समस्त उपदेशोंको ग्रहण कर लिया । जैनधर्मके प्रभावसे भव्योंकी संगति प्राप्त होती है, उपयुक्त, कल्याण कारक मधुर वचन, अच्छी बुद्धि आदि सर्वोत्तम विभूतियां सहजमें ही प्राप्त होती हैं। इस धर्मके प्रभावसे. उत्तम संतानकी प्राप्ति और
SR No.009550
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year1939
Total Pages115
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
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