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________________ गौतम चरित्र । " कौन है, संयम कितने हैं, गति कितनी और कौन है तथा पदार्थ कितने और कौन हैं, श्रुतज्ञान, अनुयोग और सास्ति काय कौन और कितने हैं, यह आप बतलाइये । वूढ़के मुंहसे श्लोक सुनकर गौतमको बड़ी ग्लानि हुई। उसने मनमेंही विचार किया कि, मैं इस श्लोकका अर्थ क्या बतलाऊ । इस वृद्धके साथ वादविवाद करनेसे कौनसी लाभ की प्राप्ति होगी। इससे तो अच्छा हो कि इसके गुरुसे शास्त्रार्थ किया जाय । गौतमने बड़े अभिमान से कहा- चल रे ब्राह्मण ! अपने गुरुके निकट चल | वहीं पर इस विषयकी मीमांसा होगी। वे दोनों विद्वान सबको साथ लेकर वहांसे खाना हुए । मार्ग में, गौतम् ने विचार किया जब इस वृद्ध के प्रश्नका उत्तर मुझसे नहीं दिया गया, तो इसके गुरुका उत्तर कैसे दिया जायगा । वह तो अपूर्व विद्वान होगा। इस प्रकारसे विचार करता हुआ गौतम समवशरण में पहुंचा। इन्द्रको अपनी कार्य सिद्धि पर बड़ी प्रसन्नता हुई। सत्य है, सिद्धि होजाने पर किसे प्रसन्नता नहीं होती । अर्थात् सबको होती है। वहां मानस्तम्भ अपनी अद्भुतशोभासे तीनों लोकोंको आश्चर्यमें डाल रहा था । उसके दर्शन मात्र से ही गौतमका दर्प चूर्ण विचूर्ण होगया । उसने विचार किया कि जिस गुरुके सन्निकट इतनी विभूति विद्यमान हो, वह क्या पराजित किया जासकता है, असंभव हैं। इसके बाद वीरनाथ भगवानका दर्शन कर वह गौतम उनकी स्तुति करने लगा - प्रभो ! आप कामरूपी योधाओंको परास्त करने में निपुण हैं । सत्पुरुषों को उपदेश देनेवाले हैं। अनेक मुनिराजों .. •
SR No.009550
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year1939
Total Pages115
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
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