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________________ गौतम चरित्र। से प्रकट हुई वह सरस्वती देवी सरल कामधेनुके समान अपने सेवकोंका हितं करनेवाली होती है, अतः वह देवी हमारी इच्छा के अनुसार कार्योको सिद्धि करे। जो भव्योत्तम मुनिराज सद्धर्मरूपी सुधासे तृप्त रहते हैं, और परोपकार जिनका जीवन बत है, वे मुझपर सदा प्रसन्न रहें । जो कामदेव सरीखे मतङ्गको परास्त करने वाले हैं, जो काम क्रोधादि अंतरङ्ग शत्रुओंके विनोशक हैं, जो संसार महासागरसे भयभीत रहते हैं, ऐसे मुनिराजके चरण कमलोंको मैं बार-बार नमस्कार करता हूँ। जो भव्यजन दुष्ट-जनोंके बचनरूपी विकराल सोसे. कभी विकृत नहीं होते एवं सदा दूसरेके हितमें रत रहते हैं, उन्हें भी मैं नमस्कार करता है। साथ ही जो दूसरोंके कार्यों में सदा विघ्न उत्पादन करनेवाले हैं तथा जिनका हृदय कुटिल है और जो विषैले सर्पके समान निन्दनीय हैं, उन दुष्टजनोंके भयसे मैं नमस्कार करता हूं। अपने पूर्व महाऋषियोंसे श्रवण कर और भव्यजनोंसे पूछकर मैं श्री गौतम स्वामीका पवित्र चरित्र लिखनेके लिये प्रस्तुत होता हूं, जो अत्यन्त सुख प्रदान करनेवाला है। किन्तु मैं न्याय, सिद्धान्त, काव्य, · छन्द, अलङ्कार, उपमा, व्याकरण, 'पुराण आदि शास्त्रोंसे सर्वथा अनभिज्ञ हूं। मैं जिस शास्त्रकी रचना कर रहा हूं, वह सन्धि-वर्ण शब्दादिसे रहित है अतएव विद्वान पुरुप मेरा अपराध क्षमा करते रहें। जिस प्रकार यद्यपि कमलका उत्पादक जल होता है, पर उसकी सुगन्धिको वायु ही चारों ओर फैलाती है, उसी प्रकार यद्यपि काव्यके प्रणेता कवि होते हैं,पर उसे विस्तृत करनेवाले भव्यजन
SR No.009550
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year1939
Total Pages115
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
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