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तीसरा अधिकार। ५३ अपूर्व प्रसन्नता हुई । साण्डिल्यने मणि, सोने,चांदी, वस्त्र आदि मुहमांगे दान दिये। स्त्रियां मंगल गान गारही थीं। जैसे किसी दरिद्रको खजाना देखकर प्रसन्नता होती है, जैसे पूर्ण चन्द्रमा को देखकर समुद्र उमड़ता है, उसी प्रकार ब्राह्मण अपने पुत्रका मुंह देखकर प्रसन्नतासे विव्हल हो रहा था। ठीक उसी समय एक निमित्त ज्ञानीने ज्योतिषके आधार पर बतलाया कि, यह पुत्र गौतम स्वामीके नामसे प्रख्यात होगा। ब्राह्मणका वह पुत्र अपने पूर्वपुण्यके उदयसे सूर्य सा तेजस्वी और कामदेव सा कान्तियुत् था । एक दूसरा देव भी स्वर्गसे वय कर उसी स्थंडिलाके गर्भ में आया। वह ब्राह्मणका गार्य नामक पुत्र हुआ। यह भी समस्त कलाओंसे युक्त था। इसी प्रकार एक तीसरा देव स्वर्गसे चयकर केसरीके उदर में आया, जो भार्गव नामक पुत्र हुआ । ये तीनों ब्राह्मण पुत्र, कुन्तीके पुत्र पांडवोंकी भांति प्रेमसे रहते थे। आयुवृद्धि के साथ उनकी कांति गुण और पराक्रम भी बढ़ते जाते थे। उन्होंने व्याकरण,छंद,पुराण, आगम और सामुद्रिक विद्यायें पढ़ डाली । ब्राह्मणका सबसे बड़ा पुत्र गौतम ज्योतिष शास्त्र, वैद्यक शास्त्र, अलंकार, न्याय आदि सवमें निपुण हुआ। देवोंके गुरु वृहस्पतिकी तरह गौतम ब्राह्मण भी किसी शुभ ब्राह्मणशालामें पांच सौ शिष्योंका अध्यापक हुआ। उसे अपने चौदह महाविद्याओंमें पारंगत होनेका बड़ा ही अभिमान था। वह विद्वताके मदमें चूर रहता था।
राजा श्रेणिक ! जो व्यक्ति परोक्षमें तीर्थंकर परमदेवकी वन्दना करता है, वस्तुतः वह तीनों लोकोंमें वन्दनीय होता