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तीसरा अधिकार |
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समर्थ होते हैं। शुद्ध लवंग पुष्पोंके द्वारा एकसौ आठ वार अपराजित मंत्र का जाप और श्री वर्द्धमान स्वामीकी सेवा करनी चाहिए | जैनशास्त्रों में श्री बर्द्धमान स्वामीके पांच नाम बतलाये गये हैं- महावीर, महाधीर, सन्मति वर्द्धमान और वीर इन समस्त नामों का स्मरण करते हुए तीन प्रदक्षिणा देकर विद्वानों को अर्घ देना चाहिए । व्रत पालन करनेवालोंको उन दिनों उनकी कथायें सुननी चाहिए, जिन्होंने उक्त व्रतका पालन कर स्वर्ग और मोक्षकी प्राप्ति की है । चित्तको स्थिर कर श्री अरहंतदेवका ध्यान करना अत्युत्तम है, कारण उनके ध्यान से
सठ शलाकाओंके पद प्राप्त होते हैं। रात्रिको पृथ्वीपर शयन तथा तीर्थंकर आदि महापुरुषों की स्तुति करनी चाहिए | जिनधर्मकी प्रभावना इन्द्रियोंको वशमें करनेवाली हैं । इसके द्वारा भव्यजीव भवसागरसे पार उतरते रहते हैं । अतएव प्रत्येक व्यक्तिका कर्त्तव्य होता है कि वह प्रभावना करे । लब्धिविधान व्रत तीन दिनोंतक बराबर करते रहना चाहिए। वह कर्म नाशक एवं इच्छित फल देनेवाला है । यह व्रत तीन वर्ष तक करना चाहिए। इसके बाद उद्यापन किया करे। उद्यापन के लिए एक सुभव्य जिनालयका निर्माण कराये, जो हर प्रकार से शोभायुक्त हो । वह पापनाशक और पुण्यराशिका कारण होता है । उक्त जिनालय में श्रीवर्द्धमान स्वामीकी सुन्दर प्रतिमा विराजमान करनी चाहिए, जो आपत्तिरूपी लताओंको नष्ट करने वाली है । इस प्रकार मन, वचन, कायसे शुद्ध होकर शान्ति विधान करना चाहिए । इसके लिए चावलोंके एकसौ आठ कमल