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गौतम चरित्र |
नियम सुनो। सुनने मात्र से ही मनुष्यको उत्तम सुख प्राप्त होता है । मोक्ष सुख प्राप्त करनेवाले भव्यलोगोंको यह व्रत भाद्रपद और चैतके महीनों में शुक्लपक्ष के अन्तिम दिनों में करना चाहिए। उस दिन शुद्ध जलसे स्नान कर धुले हुए शुद्ध वस्त्र पहनना चाहिए और मुनिराज के समीप जाकर तीन दिनके लिए शीलवत (ब्रह्मचर्य धारण करना चाहिए। इसके अतिरिक्त मन वचन कायकी शुद्धता पूर्वक अष्टोपवास करना चाहिए । क्योंकि प्रोषध पूर्वक उपवास ही मोक्षफल को देनेवाला हैं । इससे समस्त क्रर्म नष्ट हो जाते हैं। यदि इसप्रकार उपवास करनेकी शक्ति न हो तो एकान्तर अर्थात् एकदिन बीचका छोड़ कर उपवास करना चाहिए । इस व्रतको जैन विद्वानोंने बड़ी महत्ता देकर स्वर्ग फल देनेवाला बतलाया है । यदि ऐसी भी शक्ति न हो तो शक्ति अनुसार ही करें। इन तीनों दिन जैनमंदिरमें ही शयन करे। साथ ही वर्द्धमान स्वामीका प्रतिविम्व स्थापित कर इक्षुरस, दूध, दही, घी और अलसे पूर्ण कुभोंसे अभिषेक करना चाहिए। इसके बाद मन वचन और कायको स्थिरकर चन्दनादि अष्ट द्रव्योंसे भगवान की पूजा करें। पुनः सर्वज्ञदेव के मुंहसे उत्पन्न सरस्वती देवीकी पूजा तथा मुनिराजके चरणों की सेवा करे। कारण गुरु-पूजा ही पाप रूपी वृक्षोंको काटनेके लिए कुठार स्वरूप है । वह संसार समुद्र में पड़े हुए जीवोंको पार कर देनेके लिए नौकाके तुल्य है । उस समय मनको एकाग्रकर भक्ति के साथ तोनों समय सामायिक करना चाहिए | ये सामायिक आनेवाले कर्मोंको रोकने में
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