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चरकसंहिता-मा० टी०।।
स्तन्य आदि ४ कपाय। स्तन्यजननःस्तन्यशोधन शुक्रजननःशुक्रशोधनइतिचतुष्कः कपायवर्गः ॥ १७ ॥ स्तन्य ( स्तनाम दूध ) जनक. स्तन्यशोधक, शुक्रजनक, शुक्रशोधक, यह चार प्रकारके क्याथ हैं ॥ १७ ॥
नेहके उपयोगी आदि ७ कषाय० । लेहोपगःस्वेदोपगोवमनोपगोविरेचनोपगआस्थापनोपगोऽनुवासनोपगःशिरोविरेचनोपगइतिसप्तकःकयायवर्गः ॥ १८॥ . . स्नेहकर्मोपयोगी. स्वेदोपयोगी. वमनोपयोगी, विरेचनोपयोगी, आस्थापनोपयोगी, अनुरासनोपयोगी. शिरोविग्चनोपयोगी, यह सात प्रकारके क्वाथ हैं॥१८॥
छर्दिनिग्रहण आदि ३ कषाय० । छदिनिग्रहणस्तृष्णानिग्रहणोहिकानिग्रहणइतित्रिकाकषायवर्गः।। १९॥
गर्दिनिग्रहण ( छर्दिको रोकनेवाले ), प्यासको रोकनेवाले, हिचकी रोकनेवाले यह तीन प्रकारके कषाय हैं ॥ १९ ॥
पुर्गपसंग्रहणीयआदि ५ कषाय० । । · पुरीपसंग्रहणीयः पुरीपविरेजनीयोमूत्रसंग्रहणीयोमूत्रविरेज
नीयोसूत्रविरेचनीय इतिपञ्चकःकपायवर्गः ॥२०॥ नलको वांधनेवाले. मलको शुद्ध करनेवाले, अधिक मृत्रको रोकनेवाले, मूत्रको शुह करनेवाले. मृत्रको लावालं, यह पांच कषायोंका वर्ग है ॥२०॥
कासह आदि ५ कषाय० । कासहरःश्वासहरःशोथहरोज्वरहरःश्रमहरइतिपञ्चकःकपायवर्गः ।। २१ ॥ रगंलीयो इग्नवाला. श्वानका दग्नवाला.सूजनको हनेवाला, ज्वरको हरनेवाला, माग्नेवाला. यह पांच प्रकारका कपायवर्ग है ।। २१ ।।
दाहप्रशमन आदि ५ कषाय० । दाप्रशमनःशीतप्रशमनउदर्दप्रशमनोऽङ्गमईप्रशमनःशूलप्रशमन इतिपश्चकःकापायवर्गः ॥ २२ ॥