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सूत्रस्थान-अ० ४..
(३७ ऐसे ही कषायोंको कल्पना भी पांच प्रकारकी है जैसे स्वरस, कल्क, शृत, शीत और फ़ांट यह पांच कषाय हैं। १ यंत्र आदिसे औषधको दबाकर जो उसमेंसे रस निकले उसको स्वरस कहते हैं। २ जो द्रव्यको गीला ही पीसकर चटनीकी समान गोलासा बना लिया जाय उसको कल्क कहते हैं । जोद्रव्य पानी में डालकर आगपर पकायाजाय उसको शृत (काथ, काढा) कहते हैं।४द्रव्य (औषधि)को थोडा कूटकर शीतल पानीमें सायंकाल भिगोदेवे और रात्रिभर पडा रहनेदे फिर प्रातः काल मलकर छानले इसको शीत (शीतकषाय, हिम)कहते हैं। ५ द्रव्यके चूर्णको गर्म जलमें डालकर मसले फिर छानलेवे इसको फांट कहते हैं ॥९॥१०॥१११२।। इनमें फांटसे हिममें, हिमसे क्वाथमें, काथसे कल्कमें, कल्कसे स्वरसमें अधिक गुण होताहै । यह काथ विना विचारे सर्वत्र ही उपयुक्त नहीं किये जाते । रोग और रोगीका बलाबल विचारकर जो जहां उपयोगी हो उसीका वर्ताव करना चाहिये। अब जो पचास महाकषाय कह आये हैं उनकी व्याख्या करते हैं ।। १३ ॥
जीवनीयादि ६ कषायवर्ग। . . . 1. तद्यथा । जीवनीयोबृहणीयोलेखनीयोभेदनीयःसन्धानीयो
दीपनीयइतिषट्कःकषायवर्गः ॥१४॥ . वह सब इसप्रकार हैं-जीवनीय, (जीवनके बढानेवाले ) बृहणीय (मांसको पुष्ट करनेवाले) लेखनीय (मलको उखाडकर निकालनेवाले) भेदनीय (मलको फाड: नेवाले) संधानीय (टूटेहएको जोडनेवाले) दीपनीय (जठराग्निको चैतन्य करने वाले) इसप्रकार यह छः कषायोंका वर्ग हुआ ॥ १४ ॥
. वलकारकादि ४ कषाय० । बल्योवर्यःकण्ठयाहृद्यःइतिचतुष्कःकषायवर्गः॥१५॥ वलकारक, वर्णकर्ता,कंठ्य (स्वरशोधक),..हय (हृदयको हितकारी) यह चार प्रकारका कषायवर्ग है ।। १५ ।।
. तृप्तिनाशकादि ६ कषाय० । तृतितोऽशोधःकुष्टतःकण्डूनः कामिनोविषन्नइतिषट्कः कषायवर्गः ॥१६॥ तृप्तिनाशक (रुचिकारक), अर्शनाशक, कुष्ठनाशक, कंडू ( खान ) नाशक, कृमिनाशक, विषनाशक, यह छः प्रकारके वाथ हैं ॥ १६ ॥