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सूत्रस्थान-अ. १, रसका स्वाद जीभद्वारा होताहै क्योंकि रस, रसना (जीभ ) इंद्रियका विषय है। उस रसका कारण पृथ्वी और जल ही मानेगयेहैं। वैसे तो उस रसमें कमी और अधिकता पहुंचानेमें आकाश, अग्नि, वायु,इन तीनोंको भी कारण मानाहै ॥६२१७.
रसोंकी संख्या और नाम । ' स्वादुरम्लोऽथलवणोकटुकस्तिक्त एवचः ॥
- कषायश्चेतिषट्रकोऽयंरसानांसंग्रहःस्मृतः॥ ६३॥ मीठा, खट्टा, नमकीन, चर्परा, कड्डुवा, कषेला, यह छः रस हैं ॥ ६३ ॥
रसोंका कार्य । स्वाद्वम्ललवणावायुंकपायवादुतितकाः। - जयन्तिपित्तंश्लेष्माणकवायकटुतित्तकाः । ६४ इनमें मीठा, खट्टा, नमकीन, यह तीन रस वायुको शांत करते कषैला: मोठा, कडुवा, यह तीन रस पित्तको शांत करतेहै । कला, अपरा. कडुवा, यह तीन कफको शांत करतेहैं ॥ ६४ ॥
द्रव्यके तीन प्रकार । किञ्चिद्दोषप्रशमनंकिञ्चिद्धातुप्रदूषणम् । · स्वस्थवृत्तौहितंकिञ्चिद्व्यत्रिविधमुच्यते ।। ६५ कोई द्रव्य दोषोंको शमन करनेवाला होता है कोई हम ऐसे हैं जो रस रक्त. आदि धातुओंको दूषित करतेहैं । कोई ऐसे हैं जो स्वस्थ अवस्थाकी रक्षा रखतेहैं । इसप्रकार द्रव्य तीन प्रकारके होते हैं ॥ ६५ . .
जङ्गमादिभेदसे फिर ग्रीनप्रहार ! तत्पुनस्त्रिविधंज्ञेयंजाडसन्निदपार्थिवम।। ६६॥ फिर वह द्रव्य जंगम, औद्भिद, पार्शिव, इन भेदोंसे तीन प्रकारके हैं ।। ६६.
जाङ्गारवर्ण ! मधूनिगोरसाःपित्तंवसामजामासिवम् । निष्सूनचर्मरेतो. स्थिस्नायुरॉखरानखाः । नन्नेभ्यःयुज्यन्तेकेशालोमानि रोचनाः ॥१७॥ उनमें-शहद, ध, पित्त चरबी, मज्जा, रक्त,मांस,गल,मून, चर्म,कर्य, हड्डियां स्नायु, सींग, नख, खुर, केश, लोम,रोक्न यह द्रव्य नगमों (फिरने तुरनेवालों) से लिएजातेहैं ॥ ६७॥ ..