________________
चरकसंहिता-भा० टी०।
वायुके गुण और शमनका उपाय। रुक्षःशीतोलघुःसक्ष्मश्चलोऽथविषदःखरः।।
विपरीतगुणैव्यैारुतःसंप्रशाम्यति ॥ ५७ ।। तीनों दोषीम प्रथम वायुका स्वभाव लिखते हैं। वायु रूक्ष, शीतल, लघु, सूक्ष्म, चंचल, विशद, खर होताहै । इसके विपरीत स्निग्ध, उष्ण, आदि गुणांवाले द्रव्यांसे शांतिको प्राप्त होताहै ॥ ५७ ॥
पित्तके गुण और शमनोपाय । सस्नेहसुष्णंतीक्ष्णंचद्रवमम्लंसरंकटु ।
विपरीतगुणैःपित्तंद्रव्यैराशुप्रशाम्यति ॥५८॥ पित्त-नेहयुक्त, उष्ण, तीक्ष्ण, पतला, खट्टा, सारक और कटुस्वभाववाला है । अपनेसे विपरीत रूक्ष, शीतादिगुणवाले द्रव्योंसे शांत होताहै ।। ५८॥
कफै गुण और शमनका उपाय । गुरुशीतमृदुस्निग्धमधुरस्थिरपिच्छिलाः ।
श्लेष्मणः प्रशमंयान्तिविपरीतगुणैर्गुणाः ॥ ५९॥ कफ-भारी, शीतल, मृदु, चिकना, मधुर, स्थिर, पिच्छिलस्वभाववाला है और । अपनेसे विपरीत हलके, उष्ण, चरपरे, रूक्ष गुणोंवाले द्रव्योंसे शांत होताहै ॥५९॥
चिकित्साका साधारण निर्देश । विपरीतगुणैर्देशमात्राकालोपपादितः।। भेपविनिवर्तन्तेविकाराःसाधुसंमताः ॥ ६ ॥ साधनंनत्वसाध्यानांव्याधीनामुपदिश्यते ।
भूयश्चातोयथाद्रव्यंगुणकर्मप्रवक्ष्यते ॥ ६१॥ । कारण और कारणसे उत्पन्नहुई व्याधिसे विपरीत गुणवाले द्रव्योंको देश,काल श्री मात्रा विचारकर उपयोग करनेसे साध्य व्याधियांकी शांति होतीहै । परन्तु जो संपूर्ण लक्षणांसे असाध्य रोग है उनकी शांति नहीं होती । फिर भी द्रव्याम गुण तया कर्मको कथन करतह ॥ ६० ॥ ६१ ॥
रसस्वरूपनिदर्शन। रसनार्थीरसस्तस्यद्रव्यमापः क्षितिस्तथा। निवृत्तीचविशेपेचप्रत्ययाः खादयस्त्रयः ॥ ६२॥