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चरकसंहिता - भा० टी० ।
पार्थिवद्रव्यवर्णन | सुवर्णसमलाः पञ्चलोहाःससिकता सुधा । मनःशिलालेमणयो लव गंगेरिकाञ्चने॥६८॥भौममौषधमुद्दिष्ट मौद्भिदन्तु चतुर्विधम् ! सोना, चांदी, वा, शोशा, रांगा, लोहा और इनके मल, सिकता; ( वाढू ) चूना, मनसिल, हरिताल, हीरा आदि मणि, लवण, अंजन, गेरू, यह सब पार्थिव द्रव्य को है ॥ ६८ ॥
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औद्भिद्रव्यवर्णन |
वनस्पतिविरुधश्च वानस्पत्यस्तर्थोपधिः ॥ ६९ ॥ फलैर्वनस्पतिः पुष्पैर्वानस्पत्यः फलैरपि । ओषध्यः फलपाकान्ताः प्रतानैवीं
रुधः स्मृताः ॥ ७० ॥
आदि द्रव्य ४ प्रकारके हैं जैसे- वनस्पति, वीरुध वानस्पत्य, ओषधी इनमें जिनमें केवल फल ही लगे उनको वनस्पति कहते हैं जिनमें फूल फल दोनों लगें उनको वानस्पत्य कहते हैं । जो फल पकने पर सूरजादें उनको औषधी कहते हैं । जो फैलती हैं उनको वीरुध (वेल ) कहते हैं ॥ ६९ ॥ ७० ॥
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मूलत्वक्सारनिर्यासनाडस्वरसपल्लवाः । क्षाराः क्षीरंफलंपुष्पं भस्मतैलानिकण्टकाः ॥ ७१ ॥ पत्राणिशुङ्गाः कन्दाश्चप्ररोहाश्रद्भिदगणः । मूलिन्यः पोडशैकोनाः न्योविपेरी
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तकाः ॥ ७२ ॥
जड, त्वचा. सार. गोंद, नाडी, रस, कॉपल, खार, दूध, फल, पुष्प, भस्म; तेल, कांटे, त्र, शुंग, कंद, अंकुर, यह सब औद्धिद्रव्यों के ग्रहण किये जाते हैं । इनमें सोलह २६ प्रकारकी औषधियांकी जड ही लीजाती हैं । उन्नीस प्रकारकी फल प्रधान मानोजाती हैं। बाकी सबके फल फूल मूल त्वक् रस आदि उपयोगमें आते हैं ॥ ७१ ॥ ७२ ॥
स्नेहादिद्रव्यवर्णन | महास्नेहाश्चचत्वारःपंचवलंत्रणानिचाअष्टौमूत्राणिसंख्यातान्यष्टादेवपयांसिच ॥ ७३ ॥ शोधनार्थाश्चपवृक्षाः पुनर्वसुनि - दर्शिताः । यएतान्वेत्तिसंयोक्तुंविकारेपुसवेदवित् ॥ ७४ ॥
-: इयपिपाठ: ।
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